अजय चौधरी
लगता है कि सोशल मीडिया हमारी सोचने-समझने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। सिंहचतुर्मुख वाला सम्राट अशोक का स्तंभ जो आज भारत का राजचिन्ह भी है उसे सारनाथ से लिया गया है। वहां ये उत्खनन के दौरान निकला था।
देश की संसद में अब इसकी जो नकल लगाई गई है वो इसकी नक्काशी से काफी मिलती जुलती है बस उसकी लंबाई बढ़ा दी गयी है, जिससे कुछ लोगों को सिंहों के मुख अधिक खुले हुए लग रहे हैं लेकिन वो हाईट की वजह से ऐसे दिख रहे हैं। बस इतनी सी बात हमें समझनी है।
कुछ लोग मुँह बंद वाला अशोक स्तंभ भी साझा कर रहे हैं, हो सकता है उसे बनाने वाले कलाकार उसे ठीक से न बना पाया हो या उसे बंद मुँह ही अच्छा लगा हो। लेकिन हम अगर नकल करेंगे तो अपने इतिहास की करेंगे न, सारनाथ की करेंगे तो जो उससे मेल खा रहा है उसका विरोध न करें।
पॉवर ऑफ अटॉर्नी कभी रद्द न हो, उसके लिए क्या करें?
आप इस बार बनारस जाएं तो वक्त निकालकर सारनाथ भी जाएं और अपने भव्य और गौरवशाली इतिहास से परिचय कर आएं और वास्तविकता में आप सच और सोशल मीडिया की बकवास के बीच के अंतर को देख पाएंगे। मैं यहां तीन बरस पहले गया था। मैंने महसूस किया था उस स्तंभ में एक अजीब सी ऊर्जा है। उसकी नक्काशी आपको वहीं खड़े रहकर उसे कुछ देर देखते रहने को मजबूर कर सकती है।
(लेखक दस्तक इंडिया के संपादक हैं)