नेशनल हाईवे का व्यस्त चौराहा कहीं का भी हो सकता है, पर दृश्य तो कमोबेश एक जैसा ही होता है। लाल बत्ती अक्सर काम नहीं करती अगर करती भी है तो ऑरेंज बत्ती होने पर लोग गाडी धीरे करने की बजाय तेज़ कर देते हैं। ताकि लाल बत्ती होने से पहले दूसरी ओर पहुँच जाएँ। हर समय एक भगदड़ सी मची रहती हैं, अफरा तफरी का माहौल। यातायात पुलिस का सिपाही चौराहे के बीचों बीच खड़ा कभी ऊंचे से बने गोल मंच से, यातायात को सूचारू रूप से चलाने की कोशिश कर रहा हैं। मुंह पर रुमाल बाँध रखा हैं उसने वाहनो से निकलते धुंए से बचने के लिए, लेकिन धूप या बारिश से कोई बचाव नहीं। तेज़ हो जाए तब तो अपना स्थान छोड़ कर सड़क किनारे पेड़ के नीचे या कोई शेल्टर बनी हैं तो वहां शरण लेनी पड़ती है।
कईं बार एक चौकी सी बनी होती है सड़क के एक ओर जहाँ कुछ और पुलिस वाले बैठे रहते हैं या साइड मैं ट्रकों का चालान काटते रहते हैं। या फिर डंडा लेकर किसी को धमकाते रहते हैं। खैर कई छोटे मोटे व्यापार चलते हैं चौराहे पर, किसी ने चाय का या पान बीड़ी का खोखा लगा लिया कोई अखबार या मैगज़ीन बेच रहा हैं पर सबसे अधिक जो व्यापार चल रहा हैं वो हैं भीख मांगने का। एक बड़ा धंधा हैं ये जो चौराहों पर दिन रात सुबह शाम अनवरत चलता है। मेरे शहर के एक व्यस्ततम चौराहे पर तो सड़क को विभक्त करने वाली पटरी पर एक पोलियो ग्रस्त किशोर बैठा रहता है, वो मुंह से तो किसी से कुछ नहीं मांगता पर उसका शर्मीलापन और लाचारी देख कर लोग खुद ही उसे कुछ न कुछ दे देते हैं। पर कुछ दिन बाद ही एक और वैसा लड़का वह आकर बैठ गया। आजकल तो कुछ ज़्यादा ही भिखारी आ गए हैं, कोई लंगड़ा बना हुआ है, तो कोई अँधा, कोई सूखे से तन वाली गर्भवती औरत है तो किसी ने कोई बच्चा उठाया हुआ है, कोई लाचार लाठी टेकती बुढ़िया है या बूढा कई सारे बच्चे जिनमे से छोटे तो नंग- धडंग हैं और कुछ बड़े बच्चे झोले जैसे मैले कुचैले कपडे लटकाये एक गाडी से दूसरी गाडी की ओर भागते लोगों से पैसे मांग रहे हैं। कुछ लोग ये दिखाने को कि वो कमा कर खा रहे हैं कुछ बेचने का उपक्रम करते हैं जैसे कि अग्गरबत्ती, या डस्टिंग के कपडे, या मोबाइल कवर या की-चेन। पर ये सब चीज़ें घटिया होती हैं, मैंने तो एकबार अग्गरबत्ती खरीदी थी पीछे ही पड़ गया था वो मेरे लेलो मैडम सुबह से कुछ नहीं खाया बोहनी करा दो, वो नकली थी। कभी कुछ बच्चे आपकी साफ़ खिड़की पर जल्दी जल्दी गन्दा कपड़ा मार कर उम्मीद करते है कि इस एवज़ में आप उन्हें एक दो रुपये दें।
कई बार आपने देखा होगा कि ये लोग आपके धार्मिक भावनाओं को भी उद्वेलित करते हैं कभी हनुमान जी की, कभी दुर्गा जी कि या कभी शनिदेव की तस्वीर लेकर आपसे भीख मांगते हैं। मैं सोचती हूँ कि ये लोग कोई काम क्यों नहीं करते? मैंने कई बार औरतों और बच्चों से कहा कि चलो मैं तुम्हें कोई काम दूँगी, लिखाउँगी पढ़ाउंगी। तो कंधे उचका मुंह बिचका कर या फिर कोई गाली दे कर चलते बनते हैं। मैं हमेशा असमंजस की स्तिथि में रहती हूँ कि इन्हे कुछ दूँ या नहीं? अगर मैं देती हूँ तो ये भिक्षावृति को बढ़ावा होगा और अगर नहीं देती हूँ तो एक असहाय की मदद न करने का एहसास दिल को कचोटता है। कई बार सोचती हूँ क्यों इतना जोखिम उठाते हैं ये लोग, भीख माँगना कोई इतना आसान काम भी नहीं है कितना जोखिम उठाना पड़ता है। हर मौसम में चाहे धूप हो या बारिश या कड़ाके की ठण्ड स्कूटरों और बसों के बीच में से निकलना ,हर खिड़की पर दस्तक देना हाथ फैलाना और गिड़गिड़ाना, कोई कुछ दे तो रटे रटाये आशीर्वाद न दे तो गाली देना और सुनना। कई बार इनके दल होते हैं जो आपका धयान बटाकर आपकी चीज़ें, बैग, पर्स मोबाइल या लैपटॉप उड़ा लेते हैं। इन्हें नाम भी मिला हुआ है “ठक ठक ग्रुप”। वैसे तो ये नकली अंधे या लंगड़े बने होते हैं पर कई बार कुछ ऐसे लोग होते हैं जो बच्चों को अगवा करके उनके हाथ पैर तोड़ कर उन्हें अपाहिज बना कर उनसे भीख मंगवाते हैं।
अभी मैं सोच ही रही थी क्या इनका कोई स्वाभिमान नहीं होता की एक मैली कुचैली सी औरत एक मरियल से बच्चे को को गोद में उठाये भीख मांगने लगी मैडम जी भूखा है उसने दयनीय सा चेहरा बना कर कई बार अपने माथे पर हाथ लगाया, मैंने देखा की वो भूखी आँखों वाला बच्चा वैसा ही भाव अपने चेहरे पर ला कर माथे पर बार बार हाथ ले जा रहा था। यातायात सिपाही ने चलने का इशारा कर दिया था।
ज्योत्स्ना सिंह