अजय चौधरी
जेएनयू के छात्रों को ये नहीं पता है कि वो कहाँ घूमने आए थे। छात्र छात्रा पुलिस को दी अपनी शिकायत और मीडिया को दी जा रही जानकारी में बता रहे हैं कि वो असोला भाटी में घूमने गए थे। नेशनल मीडिया हिंदी हो या इंग्लिश यही छाप रहा है। जबकि असोला भाटी एक वन्य क्षेत्र है जो शाम के 5 बजे ही बंद हो जाता है। जबकि ये 6 बजे के बाद घूमने आए।
दूसरा अगर ये असोला भाटी में घूमने आए थे तो मामला फरीदाबाद के सूरजकुंड थाने में क्यों दर्ज करा रहे थे। मामला दिल्ली के संगम विहार इलाके में जाना चाहिए था। खबरों में आगे लिखा गया है कि ये असोला भाटी के भारद्वाज लेक के पास घूमने आए थे। न तो असोला भाटी में, न ही सूरजकुंड में कोई भारद्वाज लेक है। ये सबकुछ सिर्फ गूगल पर उपब्ध है। घूमने वाले भी गूगल से ही आए और लिखने वाले भी गूगल से ही वेरीफाई करते हैं तो ऐसा ही होगा।
दरअसल ये छात्र छात्राएं दिल्ली से काफी आगे फरीदाबाद के सूरजकुंड रोड पर मानव रचना कॉलेज के सामने बनी कृतिम झीलों में घूमने आए थे। ये झीलें यहां खूनी झीलों के नाम से भी मशहूर हैं। क्योंकि ये अबतक अनगिनत ज़िंदगियां लील चुकी हैं। बेहद खूबसूरत ये झीलें प्रतिबंधित क्षेत्र है। प्रशासन ने इसके लिए बाकायदा एक चेतावनी बोर्ड भी लगाया है, वो अलग बात है कि उसपर लिखा कुछ दिखाई नहीं देता।
ये वो जगह है जहाँ लोकल भी बिना बड़े ग्रुप के दिन में भी जाने से कतराते हैं, ऐसे में जेएनयू के छात्रों ने रात 9 बजे तक वहां रहकर हिम्मत का काम किया है। क्योंकि अक्सर वहां आसपास के गांव के कुछ अपराधी किस्म के लोग फोन और वॉलेट लूटपाट का काम करते रहते हैं। और वहां तक जाने वाली बाइक आदि का पेट्रोल तक निकाल लेते हैं। जेएनयू छात्रा और उसके साथियों को भी इसी किस्म के लोग मिले होंगे। जो रात को लड़की देखकर राजा हो गए और सवाल पूछने लगे कि इस टाइम यहां क्या कर रही है। वहीं पुलिस के अनुसार ये प्रतिबंधित क्षेत्र है अब यहां लोग लूटे पिटें पुलिस को क्या, आप वहां गए ही क्यों थे। कई बार सूरजकुंड पुलिस खुद जाकर वहां आने वालों से हफ्ता वसूली कर आती है।
बात ये नहीं कि वहां कोई क्यों जाता है, या तो प्रशासन वहां जाने का रास्ता पूर्ण रूप से बंद करे। और पुलिस की तैनाती करे। या फिर इन बेहद खूबसूरत झीलों को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करे।