भिखारी भी कभी प्रोफेशनल होगा ऐसा आपने कभी सोचा नहीं होगा। लेकिन धीरे धीरे ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिससे ये बात सही साबित हो रही है कि भीख मांगना भी अब किसी प्रोफेशन से कम नहीं है जिसमें अच्छी खासी कमाई भी हो। झारखंड के इस भिखारी की कहानी कुछ ऐसी ही है। छोटू बरैक बचपन से दिव्यांग हैं। इनके शरीर का निचला हिस्सा काम नहीं करता है। एक वक्त मुफलिसी इस कदर हावी थी कि पेट भरने के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ मुश्किल था। अब छोटू एक भिखारी के साथ साथ सफल कारोबारी और कामयाब इंसान हैं। ये स्टेशन पर भीख मांगकर इतनी रकम कमा लेते हैं कि उसे अपने कारोबार में निवेश कर पाते हैं। इनकी तीन बीवियां हैं और तीनों के साथ ये हंसी-खुशी जिंदगी बिता रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 40 वर्षीय छोटू 30 हजार रुपये महीना भीख मांगकर कमा लेते हैं। ये अक्सर चक्रधरपुर के रेलवे स्टेशन पर मिल जाते हैं। भीख मांगना इनका फुल टाइम पेशा है तो इसके अलावा ये वेस्टीज (हेल्थ केयर पर्सनल केयर उत्पादों) के डिस्ट्रीब्यूटर हैं। इन उत्पादों को बेचने का एक बड़ा नेटवर्क माना जाता है। छोटू इन उत्पादों को बेचने के साथ साथ लोगों को कंपनी की मेंबरशिप (सदस्यता) भी दिलाते हैं। इसके अलावा भी छोटू बहुत कुछ करते हैं। इनकी सिमडेगा जिले के बंडी गांव में एक बर्तनों की दुकान है। जिसे छोटू की तीन में से पत्नी चलाती हैं।
भीख मांगकर और दुकान से छोटू अपना जीवन मजे चलाने के लिए पर्याप्त धन कमा लेते हैं। वह हर महीनें अपनी पत्नियों को खर्च के लिए पैसे भी देते हैं। बचपन में दिव्यांगता ने उन्हें भीख मांगने पर मजबूर किया, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें भीख में ही ठीक-ठाक रकम मिलने लगी, जिसको सही जगह निवेश कर छोटा कारोबार करने में सफल हुए। वह बताते हैं कि हर दिन भीख से 1000 से 12000 रुपये तक कमा लेते हैं।