भारतीय शेयर बाजार ने तेजी के साथ नए साल में प्रवेश किया था। बाजार का तेजी का ये प्रदर्शन अब भी जारी है। 2018 में भी बेंचमार्क सूचकांकों ने नई ऊंचाई को छुआ है। सेंसेक्स और निफ्टी में साल के पहले सात कारोबारी सत्रों में एक फीसदी से ज्यादा की उछाल दर्ज की गई। नए साल की शुरुआत से आज तक सेंसेक्स 387 अंक चढ़कर 34,443 पर बंद हुआ। दूसरी ओर निफ्टी इस दौरान 107 अंकों की बढ़त के साथ 10,637 पर बंद हुआ। 2018 में अब तक बीएसई मिडकैप में दो फीसदी और स्मॉल कैप में 3.5 फीसदी की तेजी देखी गई।
साल के पहले सात कारोबारी सत्र के दौरान बीएसई 500 सूचकांक में फिलिप्स कार्बन ब्लैक का प्रदर्शन सबसे शानदार रहा और इसका शेयर 48.8 फीसदी चढ़ गए। वाहन उद्योग में सुधार को देखते हुए ब्रोकरेज हाउस इस शेयर को खरीदने की सलाह देने को उत्सुक हैं। सीमेंट, कार्बन और रसायन कंपनी रेन इंडस्ट्रीज में इस दौरान 23.8 फीसदी की उछाल आई। इसी तरह इरोस इंटरनैशनल, जिंदल स्टील ऐंड पावर और ईआईएच में 2018 के दौरान 20 फीसदी से ज्यादा की तेजी दर्ज की गई। बाजार के भागीदारों को उम्मीद है कि अल्प से मध्यम अवधि में बाजार में अभी तेजी का रुख बना रहेगा। घरेलू अर्थव्यवस्था और कंपनियों की आय में सुधार की उम्मीद में प्रमुख ब्रोकरेज ने तो पहले ही शेयर बाजार के लिए इस साल के सकारात्मक रहने के संकेत दे दिए हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि नकदी प्रवाह अच्छी रहने से कंपनियों की कम आय के बावजूद 2017 में बेंचमार्क सूचकांकों में 30 फीसदी की तेजी आई। घरेलू संस्थागत निवेशकों की ओर से आक्रामक खरीद से भी भारतीय बाजार पिछले साल नई ऊंचाई पर पहुंचा। विशेषज्ञों का कहना है कि 2018 में भी यह प्रवाह बना रह सकता है, लेकिन उसकी मात्रा थोड़ी कम हो सकती है।
यूबीएस सिक्योरिटीज के इंडिया रिसर्च प्रमुख गौतम छौछडिय़ा ने कहा, ‘2017 में बाजार का प्रदर्शन मूल्यांकन के पुर्न-रेटिंग की अगुआई में हुई न कि आय में सुधार के दम पर। पुर्न-रेटिंग कम ब्याज दरों की तुलना में कम जोखिम प्रीमियम और दीर्घावधि में वृद्घि की उम्मीद को प्रतिबिंबित करती है। 2018 के भी बाजार के अनुकूल रहने की उम्मीद है।’ विश्लेषक अब कंपनियों की आय में सुधार का अनुमान लगा रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों से नीतिगत मोर्चे पर कई अड़चनों की वजह से कंपनियों की आय में वृद्घि नरम बनी हुई है। क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट में इंडिया इक्विटी रिसर्च के जितेंद्र गोहिल के अनुसार निफ्टी पर प्रति शेयर आय पिछले तीन साल से लगातार कम हो रही है। आरबीआई द्वारा परिसंपत्ति की गुणवत्ता समीक्षा, विमुद्रीकरण और वस्तु एवं सेवा कर के लागू होने से इस पर असर पड़ा है। गोहिल ने कहा, ‘फार्मा, आईटी और दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और बदलते परिदृश्य की वजह से आय में खासी कमी आई है। मेरे विचार से अब यह समस्या खत्म होती दिख रही है।’