साल 2017 भारतीय अर्थव्यस्था के लिए एक बहुत बड़ा बदलाव लेकर आया। पिछले साल 1 जुलाई को देश का सबसे बड़ा कर सुधार जीएसटी लागू हुआ। इस कदम ने पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था को कई मायनों में बदल दिया। एक बदलाव जिस पर अभी किसी की नजर नहीं पड़ी है वो है इस साल के बजट पर असर। इनडायरेक्ट टैक्स के बाहर निकलने से बजट 2018 का सस्पेंस खत्म हो गया है। अब जीएसटी काउंसिल गुड्स और सर्विस पर कर की दरें तय करती है। यहां तक की पिछले बजट में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी इनडायरेक्ट टैक्स के प्रस्ताव बजट से हटा दिए थे।
अब तक ये थी व्यवस्था
अभी बजट 2 हिस्सों में होता है पार्ट ए और पार्ट बी। पहले पार्ट में अलग-अलग सेक्टर को मिलने वाली रकम की जानकारी होती है और नई स्कीमों का ब्यौरा होता है। पार्ट बी में सभी तरह के टैक्स प्रस्ताव होते हैं जिसमें डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स शामिल होते हैं। डायरेक्ट टैक्स में इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स आते हैं। वहीं इनडायरेक्ट टैक्स में (जीएसटी से पहले) सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, वैट और ओक्टराइ होती है। जीएसटी के कारण 1 दर्जन से ज्यादा टैक्स खत्म हो गए हैं। अब जेटली इनमें बदलाव नहीं कर पाएंगे।
जीएसटी काउंसिल के हाथ में दर
इनडायरेक्ट टैक्स के कारण आम जनता बजट से जुड़ी रहती थी। सभी लोगों की इस पर नजर रहती थी कि क्या सस्ता होगा क्या महंगा होगा। इसका असर अमीर, गरीब, छात्र, युवा सब पर पड़ता था। अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि जीएसटी के कारण सामान और सेवाओं पर टैक्स की दर तय करने का काम जीएसटी काउंसिल के पास चला गया है। काउंसिल समय-समय पर बैठक कर इनमें बदलाव करती रहती है। इस कारण टैक्स को लेकर बजट में कोई सस्पेंस नहीं रहेगा।
इनकम टैक्स को लेकर ही सस्पेंस
अब बजट का काम सिर्फ योजनाओं को पैसा बांटना, डायरेक्ट टैक्स और कस्टम ड्यूटी बढ़ाना घटाना ही रह गया है। अब बजट में इनकम टैक्स के अलावा आम जनता को कनेक्ट करे ऐसी कोई बड़ी चीज नहीं होगी। कई स्कीम, कृषि, हाउसिंग जैसी स्कीमों को मिलने वाले पैसे का असर आम जनता पर पड़ेगा। अब राजकोषिय घाटा और कृषि सिंचाई योजना को कितना पैसा मिला इससे जनता कनेक्ट नहीं होगी जितना फ्रिज या कपड़े सस्ते या महंगे हुए से कनेक्ट होती थी। इसलिए अगली बार बजट के बदले जीएसटी काउंसिल पर नजर रखेंगे तो ज्यादा फायदे में रहेंगे।