मालदीव संकट को लेकर चीनी मीडिया ने कहा है कि अगर भारत वहां सैन्य हस्तक्षेप करता है तो चीन उसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएगा।सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय में यह बात कही गई है। संपादकीय में कहा गया है कि मालदीव इस समय संकट से जूझ रहा है, ऐसे में भारत को भी संयम से काम लेना चाहिए। संपादकीय में मौजूदा राजनीतिक संकट को मालदीव का आतंरिक मामला बताते हुए कहा गया है कि अगर भारत सैन्य दखल देता है तो चीन भी जवाबी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होगा।
मालदीव में सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन करने वालों को निशाने पर लेते हुए ‘माले में अनधिकृत सैन्य हस्तक्षेप रोका जाना चाहिए’ शीर्षक से लिखे गए संपादकीय में इसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मानकों के हिसाब से सही नहीं बताया गया है। संपादकीय में साफ-साफ कहा गया है कि सभी देशों को एक दूसरे की संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत का सम्मान करना चाहिए। साथ ही संपादकीय में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि अगर मालदीव में हालात और बिगड़ते हैं तो अंतरराष्ट्रीय तंत्र के जरिए इसका समाधान निकाला जाना चाहिए।
संपादकीय में भारत पर ‘सार्वजनिक और अभद्रता’ से मालदीव के घरेलू मामले में हस्तक्षेप को लेकर चर्चा कर रहा है। साथ ही सलाह दी है कि भारत वहां एकतरफा सैन्य हस्तक्षेप न करे. इसमें कहा गया, ‘चीन भारत के प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने की सोच से नहीं लड़ रहा है। कुछ भारतीय सैन्य हस्तक्षेप की वकालत कर रहे हैं। हालांकि ये अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत नहीं आता, जो दूसरे देश की संप्रभुता, स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान और हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत के खिलाफ है। अगर मालदीव में स्थिति खराब होती है तो अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत ही हल निकाला जाना चाहिये। एकतरफा सैन्य हस्तक्षेप पहले से ही वैश्विक व्यवस्था को बिगाड़ रहा है’।
1988 में हुए विद्रोह का उदाहरण भी दिया जिसमें भारत ने वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के निवेदन पर भारत ने सेना भेजी थी। संपादकीय में इसका जिक्र करते हुए कहा है, ‘सुरक्षा के लिये मालदीव की भारत पर निर्भरता ने भारत को अक्खड़ बना दिया है और मालदीव को अपने प्रभाव में लना चाहता है। लेकिन माले दिल्ली से परेशान है, जो हमेशा मालदीव की राजनीति को दबाने की कोशिश कर रहा है’।
क्या है मामला:
मालदीव की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले गुरुवार (1 फरवरी) को विपक्ष के नौ हाई-प्रोफाइल राजनीतिक बंदियों को रिहा करने और उनके खिलाफ चलाये गए मुकदमों को राजनीति से प्रेरित बताये जाने के बाद से ही देश में राजनीतिक संकट के बादल छा गये थे. घटना के बाद मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दिया, जिसके कारण पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये. राष्ट्रपति ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी जिसके कुछ ही घंटों बाद सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद और एक अन्य न्यायाधीश अली हमीद को गिरफ्तार कर लिया गया.