अजय चौधरी
भारत सरकार पर यह आरोप लगाने वालों की कमी नहीं है कि चार साल बाद उन्होंने 39 भारतीयों को जो इराक गए थे मृत घोषित किया है। टीवी चैनल भी डिबेट में यही पूछ रहे हैं कि इतना समय क्यों लगा। जबकि सरकार को उनके बारे में ये पहले ही अंदेशा हो गया था कि वह मर चुके हैं। फिर भी सरकार यह सच उनके परिवार से छुपाती रही और उन्हें एक झूठी आस जगाए रखे रही।
किसी की मौत की पुष्टि हुए बिना हम अखबारों में भी उसे मृत नहीं लिखते हैं, घायल या लापता जो भी लिखें। ये खबर का नियम है। ये सब जानते हैं, वो भी जो प्राइम टाइम पर बैठकर चीख रहे हैं। लेकिन सरकार पर चार साल तक ये बात छुपाने का आरोप लगाने वालों को ये समझना होगा कि जब तक पुष्टि नहीं हो पाई भारत सरकार ने उन्हें लापता कहा तो इस में भारत सरकार ने कौनसा बड़ा गुनाह कर दिया।
केदारनाथ पर आई प्रलय के बाद भारत में ही लापता हुए लोगों को खोजने के लिए किसी ने प्रयास नहीं किया आज भी पहाड़ों में दबकर हजारों लोग जो मर चुके हैं, वो लापता ही है। वो भी तो किसी परिवार के सदस्य थे। किसी ने क्यों आवाज नहीं उठाई वो तो अपने ही देश का मामला है। खोद कर लाशें तो निकाल ही सकते थे।
अरे हिम्मत मानो भारत सरकार की कि उसने किसी दूसरे देश में जाकर खुदाई करवाई। डीएनए टेस्ट करवाया, इतने सालों से गड़े मुर्दे को उखाड़कर लेकर आ रहे हैं और उनके परिवार तक पहुंचा रहे हैं। ये बहुत हिम्मत और मेहनत का काम है। सरकार चाहती तो लापता रहने देती या फिर मृत बताकर छोड़ देती। किसको क्या फर्क पड़ रहा था,कौन जा रहा था। लेकिन पक्का सबूत होने के बाद ही इस बात का एलान किया गया कि 39 भारतीयों की मौत हो चुकी है। इसमें क्या गलत है।
हां आप 4 साल देख रहे हैं, कि 4 साल हो गए, सरकार को 4 साल लग गए लेकिन मोसुल जहां वह रह रहे थे वो जगह आईएसआईएस के कब्जे से पिछले साल ही आजाद हुई है। तो ऐसे में 4 साल नहीं सरकार के पास केवल 1 साल था। इसमें उसने चार राज्य की सरकारों से मिलकर इनके परिवारों के डीएनए यहां से ले जाकर वहां जाकर उनको ढूंढा गया। उनकी लाशों को ढूंढना ही बहुत बड़ा चैलेंज था। हाथों में कड़े, बड़े बाल और जूतों से अंदाजा लगा उन्हें अपने लोगों की लाश समझा। फिर भी पुष्टि करने के लिए डीएनए रिपोर्ट का इंतजार किया गया।
हजारों की लाश एक तरफ करवा अपने देश की लाशों का टेस्ट पहले करवाया गया। उन्हें अब भारत भी लाया जा रहा है। ताकि उनके परिवार के लोग अपने हाथों से उन्हें अग्नि दे सके। इराक में हर देश का नागरिक मारा गया। बड़ी संख्या में मारा गया। कितने देश हैं जो अपने नागरिकों की लाश हासिल करने में कामयाब रहे हैं। शायद भारत पहला हो। इसे सुषमा स्वराज और जरनल वीके सिंह की उपलब्धि के रूप में देखना चाहिए। इन्होंने इतनी हिम्मत और धैर्य से इस मिशन को अंजाम दिया है।