
सलेश शर्मा
चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद गन्ना किसानों का बकाया भुगतान बाकी है। शुगर मिल एसोसिएशन की माने तो ज्यादा उत्पादन से बाजार में चीनी के दाम गिरे जिससे उन्हें प्रतिकिलो लगभग 8 से 9 रुपए का नुक़सान हो रहा है। ऐसे में गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान सरकार के गले की हड्डी बना हुआ है। हालांकि सरकार ने भुगतान की घोषणा कर दी है।
चीनी के अधिक उत्पादन पर एक्सपोर्ट का सहारा होता था लेकिन इंटरनेशनल मार्केट में हमारी चीनी मंहगी है यद्यपि पाकिस्तान की चीनी भी हमसे सस्ती है। अब सारी चीनी की खपत घरेलू मार्केट में ही करनी है परिणाम स्वरूप चीनी के मूल्य में लगातार गिरावट जिससे मिल मालिकों को घाटा हो रहा है और गन्ना किसानों का भुगतान नहीं हो पाया।
अभी तक चीनी मिलों ने बाय प्रोडक्ट्स का (एथेनॉल, मेथनॉल) का उत्पादन प्रारंभ नहीं किया जिससे खोई और सीरे का उपयोग ना के बराबर है। बाय प्रोडक्ट्स का उपयोग बिजली बनाने में, पेट्रोल और डीजल में किया जा सकता है जिससे चीनी के मूल्य को कवर किया जा सकता था पर राजनीतिक भ्रष्टाचार इंपोर्ट की सबसे सरल जननी रही थी। गेंहू, दाल और चीनी के इंपोर्ट में महाराष्ट्र के एक बड़े लीडर (जो कि शुगर मिलों के भी किंग है) की विशेषता रही थी। पेट्रोल और डीजल के इंपोर्ट में नटवर सिंह की नटवर लीला थी ही जिसके कारण चीनी मिलों को निर्देश ही नही दिया गया था कि बाय प्रोडक्ट्स का उत्पादन करें और इसका परिणाम गन्ना किसान और भारत जनता को भोगना है।
तीसरा मुख्य कारण सीरे या गन्ने के रस से बनने वाली शराब रम, 8 पीएम, पिंगा, कचाका में कमी आई है। क्योंकि बीयर, इंपोर्टेड शराब का चलन अधिक हुआ है जबकि बीयर जौ या गेंहू और कुछ फलों से बनाई जाती है। कुछ शराब की वैरायटी भी फलों जैसे अंगूर सेब आदि से बनाई जाने लगी और इन सब में इंपोर्टेड अल्कोहल मिलाया जाने लगा। इसके चलते सीरे का उपयोग कम हो गया चीनी की कॉस्ट बढ़ गई है। जिसके कारण हमारी चीनी इंटरनेशनल मार्केट में मंहगी हो गई है। इस समस्या का कोई निदान है ही नहीं केवल राजनीति ही होगी वो भी वोट बैंक के लिए। कभी कर्ज माफी तो कभी सब्सिडी के झुनझुने से किसान को बेहलाया जाएगा। इसके लिए कदम बहुत पहले उठाने थे जो भ्रष्टाचार के चलते नहीं उठाए गए थे। अब समाधान मुश्किल है।
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”
सलेश शर्माचीनी का रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद गन्ना किसानों का बकाया भुगतान बाकी है। शुगर मिल एसोसिएशन की माने तो ज्यादा उत्पादन से बाजार में चीनी के दाम गिरे जिससे उन्हें प्रतिकिलो लगभग 8 से 9 रुपए का नुक़सान हो रहा है। ऐसे में गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान सरकार के गले की हड्डी बना हुआ है। हालांकि सरकार ने भुगतान की घोषणा कर दी है।चीनी के अधिक उत्पादन पर एक्सपोर्ट का सहारा होता था लेकिन इंटरनेशनल मार्केट में हमारी चीनी मंहगी है यद्यपि पाकिस्तान की चीनी भी हमसे सस्ती है। अब सारी चीनी की खपत घरेलू मार्केट में ही करनी है परिणाम स्वरूप चीनी के मूल्य में लगातार गिरावट जिससे मिल मालिकों को घाटा हो रहा है और गन्ना किसानों का भुगतान नहीं हो पाया।अभी तक चीनी मिलों ने बाय प्रोडक्ट्स का (एथेनॉल, मेथनॉल) का उत्पादन प्रारंभ नहीं किया जिससे खोई और सीरे का उपयोग ना के बराबर है। बाय प्रोडक्ट्स का उपयोग बिजली बनाने में, पेट्रोल और डीजल में किया जा सकता है जिससे चीनी के मूल्य को कवर किया जा सकता था पर राजनीतिक भ्रष्टाचार इंपोर्ट की सबसे सरल जननी रही थी। गेंहू, दाल और चीनी के इंपोर्ट में महाराष्ट्र के एक बड़े लीडर (जो कि शुगर मिलों के भी किंग है) की विशेषता रही थी। पेट्रोल और डीजल के इंपोर्ट में नटवर सिंह की नटवर लीला थी ही जिसके कारण चीनी मिलों को निर्देश ही नही दिया गया था कि बाय प्रोडक्ट्स का उत्पादन करें और इसका परिणाम गन्ना किसान और भारत जनता को भोगना है।तीसरा मुख्य कारण सीरे या गन्ने के रस से बनने वाली शराब रम, 8 पीएम, पिंगा, कचाका में कमी आई है। क्योंकि बीयर, इंपोर्टेड शराब का चलन अधिक हुआ है जबकि बीयर जौ या गेंहू और कुछ फलों से बनाई जाती है। कुछ शराब की वैरायटी भी फलों जैसे अंगूर सेब आदि से बनाई जाने लगी और इन सब में इंपोर्टेड अल्कोहल मिलाया जाने लगा। इसके चलते सीरे का उपयोग कम हो गया चीनी की कॉस्ट बढ़ गई है। जिसके कारण हमारी चीनी इंटरनेशनल मार्केट में मंहगी हो गई है। इस समस्या का कोई निदान है ही नहीं केवल राजनीति ही होगी वो भी वोट बैंक के लिए। कभी कर्ज माफी तो कभी सब्सिडी के झुनझुने से किसान को बेहलाया जाएगा। इसके लिए कदम बहुत पहले उठाने थे जो भ्रष्टाचार के चलते नहीं उठाए गए थे। अब समाधान मुश्किल है।