
शैलेश शर्मा
चलो आज जी भर के पिया जाए
टुकड़ों की जिंदगी को जी भर के जिया जाय
कुछ लोग थे पर्दे में तो कुछ लोग थे आम
माजरा तो छिपने छिपाने का था बोतलों को ठिकाने लगाने का था क्योंकि वो खाली हो गई दिल से उतर गई
शेख जी फिर आएंगे पिएंगे पिलाएंगे सजदा को भी जाएंगे बोतल आज फिर भरी है खाली हो जाएगी फेकी जाएगी आदेश ये सब अंदर है बाहर नहीं दिखाया जाए
हम अच्छे है अच्छे थे अच्छे रहेंगे इसके अलावा कुछ ना पूछा जाए
चलो आज जी भर के पिया जाए
टुकड़ों की जिंदगी को जी भर के जिया जाए
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”