
शैलेश शर्मा
एक बार स्व. प्रभात जोशी और माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्व विद्यालय नोएडा कैंपस में गेस्ट लेक्चर के लिए आए थे उनके लेक्चर समाप्ति के बाद मैंने कुछ सवाल पूछे थे मूलभूत सुविधाएं (स्वास्थ्य, शिक्षा, घर, खाद्य सुरक्षा का अधिकार आदि) के सवाल आज़ादी से पहले भी उठाए जाते रहे थे और अब तो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया दोनों में जोर शोर से बहस के साथ उठाए जातें है जिसमें विशेषज्ञ भी प्राइम टाइम की शोभा बढ़ाते है। ये समस्या पहले भी खत्म नहीं हुई थी और अब भी नहीं। क्या इसके लिए पत्रकारिता जिम्मेदार है या राजनीतिक पार्टियां। तब जोशी ने बताया इसके लिए राजनीतिक पार्टियां तो जिम्मेदार है ही पर उससे ज्यादा जिम्मेदार पत्रकारिता है क्योंकि राजनीतिक पार्टियों को बच निकलने का रास्ता ये पत्रकारिता ही देती है क्योंकि जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद, भाषावाद ही जनता को बांटे रखता है और इस काम में अधिकतर पत्रकारों की भूमिकाएं संदिग्ध रहीं है जिसे उन पत्रकारों और मीडिया संस्थानों ने मजबूती से आगे बढ़ाया है जिस कारण राजनीतिक दल बच निकलते है ये रही बात 2003 की जो प्रभाष जोशी ने बताई।
पूर्ववर्ती सरकार को ही बताना होगा कि एनआरसी का गठन क्यों हुआ
शैलेश शर्माएक बार स्व. प्रभात जोशी और माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्व विद्यालय नोएडा कैंपस में गेस्ट लेक्चर के लिए आए थे उनके लेक्चर समाप्ति के बाद मैंने कुछ सवाल पूछे थे मूलभूत सुविधाएं (स्वास्थ्य, शिक्षा, घर, खाद्य सुरक्षा का अधिकार आदि) के सवाल आज़ादी से पहले भी उठाए जाते रहे थे और अब तो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया दोनों में जोर शोर से बहस के साथ उठाए जातें है जिसमें विशेषज्ञ भी प्राइम टाइम की शोभा बढ़ाते है। ये समस्या पहले भी खत्म नहीं हुई थी और अब भी नहीं। क्या इसके लिए पत्रकारिता जिम्मेदार है या राजनीतिक पार्टियां। तब जोशी ने बताया इसके लिए राजनीतिक पार्टियां तो जिम्मेदार है ही पर उससे ज्यादा जिम्मेदार पत्रकारिता है क्योंकि राजनीतिक पार्टियों को बच निकलने का रास्ता ये पत्रकारिता ही देती है क्योंकि जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद, भाषावाद ही जनता को बांटे रखता है और इस काम में अधिकतर पत्रकारों की भूमिकाएं संदिग्ध रहीं है जिसे उन पत्रकारों और मीडिया संस्थानों ने मजबूती से आगे बढ़ाया है जिस कारण राजनीतिक दल बच निकलते है ये रही बात 2003 की जो प्रभाष जोशी ने बताई।पत्रकारिता का चहरा-आज की पत्रकारिता के कुछ उदाहरण जैसे सीट के पीछे झगड़ा हुआ उसे हिंदू मुस्लिम बना दिया, अगर किसी महिला का बलात्कार हुआ तो उससे पहले दलित या मुस्लिम का विशेषण जरूर लगेगा। बलात्कार अपने में ही जघन्य अपराध है उसके लिए विशेषण की आवश्यकता नहीं। एक न्यूज चैनल के गेंहू की खेती को धान की खेती बताने वाले मोहज्जीद पत्रकार ने हिंदुओं और दलितों में खूनी संघर्ष को ब्रेकिंग न्यूज बना दिया था क्या संविधान के हिसाब से दलित और हिन्दू अलग अलग है? उस पार्टी की विचारधारा का है तो दलित और पार्टी की विचारधारा का नहीं तो वह दलित नहीं है। इसी आधार पर मुस्लिमों में भेद भाव किया जाता रहा है और नफरत फैलाई जाती रही है। स्वघोषित ईमानदार काली स्क्रीन के विशेषज्ञ का बस चले तो वो कफन में भी हिन्दू मुस्लिम दलित का तड़का जरूर लगा दें। लाशों के धर्म और जाति तो ढूंढ़ते रहते है। एक दूसरे के बीच नफरत का एजेंडा चला के अपनी मनपंसद पार्टियों को फायदा पहुंचाने की जुगत भिड़ाते रहते है।कैसे राजनीतिक दल बच निकलते है-प्रभाष की बात को आगे बढ़ाते हुए क्यों ना हिन्दू में सवर्ण और दलित, मुस्लिम में सिया सुन्नी को खत्म करके केवल हिन्दुस्तानी और अमीर गरीब का खांचा तैयार किया जाए पर एक वर्ग को नफरत और तुष्टिकरण की आदत पड़ चुकी है जिस कारण राजनीतिक दल बच निकलते है और ये समस्या खत्म हो जाए तो राजनीतिक दलों को बचने का रास्ता नहीं मिलेगा। केवल विकास, लॉइन ऑर्डर मजबूत होगा। प्रभाष की बात आज मेरे मन में आ गई क्योंकि हिन्दू मुस्लिम के जोड़े को पासपोर्ट में कठिनाई आई। अधिकारी पूरी जांच करे जिसमें पहले के पासपोर्ट में नाम दूसरा। नए पासपोर्ट में नया नाम। निकाह नामा में कुछ और पर सजा अधिकारी को। क्या इससे लॉइन ऑर्डर मजबूत हो रहा है। प्रभाष की पहले की बाते आज भी प्रासंगिक हो रही और इस मुद्दे को भी हिन्दू मुसलमान बना दिया गया। जबकि सहमति से एक दूसरे धर्म के लोग शादी भी कर सकते है और उन्हें पासपोर्ट भी मिलना चाहिए इसमें कोई संदेह नहीं।
पत्रकारिता का चहरा-
आज की पत्रकारिता के कुछ उदाहरण जैसे सीट के पीछे झगड़ा हुआ उसे हिंदू मुस्लिम बना दिया, अगर किसी महिला का बलात्कार हुआ तो उससे पहले दलित या मुस्लिम का विशेषण जरूर लगेगा। बलात्कार अपने में ही जघन्य अपराध है उसके लिए विशेषण की आवश्यकता नहीं। एक न्यूज चैनल के गेंहू की खेती को धान की खेती बताने वाले मोहज्जीद पत्रकार ने हिंदुओं और दलितों में खूनी संघर्ष को ब्रेकिंग न्यूज बना दिया था क्या संविधान के हिसाब से दलित और हिन्दू अलग अलग है? उस पार्टी की विचारधारा का है तो दलित और पार्टी की विचारधारा का नहीं तो वह दलित नहीं है। इसी आधार पर मुस्लिमों में भेद भाव किया जाता रहा है और नफरत फैलाई जाती रही है। स्वघोषित ईमानदार काली स्क्रीन के विशेषज्ञ का बस चले तो वो कफन में भी हिन्दू मुस्लिम दलित का तड़का जरूर लगा दें। लाशों के धर्म और जाति तो ढूंढ़ते रहते है। एक दूसरे के बीच नफरत का एजेंडा चला के अपनी मनपंसद पार्टियों को फायदा पहुंचाने की जुगत भिड़ाते रहते है।
बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम की घटना से हम शर्मसार है – नीतीश कुमार
कैसे राजनीतिक दल बच निकलते है-
प्रभाष की बात को आगे बढ़ाते हुए क्यों ना हिन्दू में सवर्ण और दलित, मुस्लिम में सिया सुन्नी को खत्म करके केवल हिन्दुस्तानी और अमीर गरीब का खांचा तैयार किया जाए पर एक वर्ग को नफरत और तुष्टिकरण की आदत पड़ चुकी है जिस कारण राजनीतिक दल बच निकलते है और ये समस्या खत्म हो जाए तो राजनीतिक दलों को बचने का रास्ता नहीं मिलेगा। केवल विकास, लॉइन ऑर्डर मजबूत होगा। प्रभाष की बात आज मेरे मन में आ गई क्योंकि हिन्दू मुस्लिम के जोड़े को पासपोर्ट में कठिनाई आई। अधिकारी पूरी जांच करे जिसमें पहले के पासपोर्ट में नाम दूसरा। नए पासपोर्ट में नया नाम। निकाह नामा में कुछ और पर सजा अधिकारी को। क्या इससे लॉइन ऑर्डर मजबूत हो रहा है। प्रभाष की पहले की बाते आज भी प्रासंगिक हो रही और इस मुद्दे को भी हिन्दू मुसलमान बना दिया गया। जबकि सहमति से एक दूसरे धर्म के लोग शादी भी कर सकते है और उन्हें पासपोर्ट भी मिलना चाहिए इसमें कोई संदेह नहीं।
लड़कियां क्या लड़के भी सुरक्षित नहीं है
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”