पिछले दिनों हिंदी न्यूज चैनल एबीपी में जो कुछ घटनाक्रम हुआ वो सोशल मीडिया और दबी जुबां से पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। अदृश्य ताकतों का सिग्नल हिलाने से लेकर एक- एक कर तीन पत्रकारों का संस्थान से निकलना लोगों को इस लोकतांत्रिक देश में हजम सा नहीं हो रहा था। बली का बकरा बने अभिषार शर्मा, मिलिंद खांडेकर और पुण्य प्रसून बाजपाई अब तक चुप्पी साधे रहे। हालांकि पु्ण्य ने ट्वीटर के माध्यम से बहुत कुछ बोलने की कोशिश की है लेकिन खुले तौर पर अभी तक चुप ही थे। लेकिन अब उन्होंने चुप्पी तोडते हुए न्यूज वेबसाईट द वायर पर अपने एबीपी से निकलने की पूरी कहानी बयां की है। पहले आपको वो ट्वीट दिखा देेते हैं जो पुण्य जी ने संस्थान से निकलने के बाद किए थे…
सियासत/सत्ता/संसद का स्तर समझे…
मीडिया पर चार शब्द सही तरीक़े से विपक्ष संसद के भीतर बोल नहीं पाता…
मंत्री का जवाब तथ्य से परे ग़लतबयानी पर टिकता है…
जब दख़ल नहीं तो क्या आदृश्य शक्तियों का बोलबाला है..
खानापूर्ति करने के लिए संसद चलायी जाती है..
सोचिए ज़रूर…..
पिछले दिनों हिंदी न्यूज चैनल एबीपी में जो कुछ घटनाक्रम हुआ वो सोशल मीडिया और दबी जुबां से पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। अदृश्य ताकतों का सिग्नल हिलाने से लेकर एक- एक कर तीन पत्रकारों का संस्थान से निकलना लोगों को इस लोकतांत्रिक देश में हजम सा नहीं हो रहा था। बली का बकरा बने अभिषार शर्मा, मिलिंद खांडेकर और पुण्य प्रसून बाजपाई अब तक चुप्पी साधे रहे। हालांकि पु्ण्य ने ट्वीटर के माध्यम से बहुत कुछ बोलने की कोशिश की है लेकिन खुले तौर पर अभी तक चुप ही थे। लेकिन अब उन्होंने चुप्पी तोडते हुए न्यूज वेबसाईट द वायर पर अपने एबीपी से निकलने की पूरी कहानी बयां की है। पहले आपको वो ट्वीट दिखा देेते हैं जो पुण्य जी ने संस्थान से निकलने के बाद किए थे…‘द वायर’ में लिखे लेख में पुण्य ने ये बताया है कि किस तरह सरकार मीडिया पर नजर रख रही है और उसे अपने मुताबिक चलाने की कोशिश कर रही है। पुण्य ने लिखा है कि –प्रधानमंत्री मोदी ही चैनलों की टीआरपी की ज़रूरत बन गए और प्रधानमंत्री के चेहरे का साथ सब कुछ अच्छा है या कहें अच्छे दिन की ही दिशा में देश बढ़ रहा है, ये बताया जाने लगा तो चैनलों के लिए भी यह नशा बन गया और ये नशा न उतरे इसके लिए बाकायदा मोदी सरकार के सूचना मंत्रालय ने 200 लोगों की एक मॉनिटरिंग टीम को लगा दिया गया।बाकायदा पूरा काम सूचना मंत्रालय के एडिशनल डायरेक्टर जनरल के मातहत होने लगा। जो सीधी रिपोर्ट सूचना एवं प्रसारण मंत्री को देते। और जो 200 लोग देश के तमाम राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों की मॉनिटरिंग करते हैं वह तीन स्तर पर होता है।150 लोगों की टीम सिर्फ़ मॉनिटरिंग करती है, 25 मॉनिटरिंग की गई रिपोर्ट को सरकार के अनुकुल एक शक्ल देती है और बाकि 25 फाइनल मॉनिटरिंग के कंटेंट की समीक्षा करते हैं।उनकी इस रिपोर्ट पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तीन डिप्टी सचिव स्तर के अधिकारी रिपोर्ट तैयार करते और फाइनल रिपोर्ट सूचना एवं प्रसारण मंत्री के पास भेजी जाती. जिनके ज़रिये पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी सक्रिय होते और न्यूज़ चैनलो के संपादकों को दिशा निर्देश देते रहते कि क्या करना है, कैसे करना है।और कोई संपादक जब सिर्फ़ ख़बरों के लिहाज़ से चैनल को चलाने की बात कहता तो चैनल के प्रोपराइटर से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय या पीएमओ के अधिकारी संवाद कायम करते बनाते।दवाब बनाने के लिए मॉनिटरिंग की रिपोर्ट को नत्थी कर फाइल भेजते और फाइल में इसका ज़िक्र होता कि आख़िर कैसे प्रधानमंत्री मोदी की 2014 में किए गए चुनावी वादे से लेकर नोटबंदी या सर्जिकल स्ट्राइक या जीएसटी को लागू करते वक़्त दावों भरे बयानों को दोबारा दिखाया जा सकता है।पूरा आर्टिकल पढने के लिए आप द वायर के इस लिंक पर जा सकते हैं-
— punya prasun bajpai (@ppbajpai) August 3, 2018
‘संजय’ ही धृतराष्ट्र हो जाए तो फिर धृतराष्ट्र युधिष्ठिर हो ही जायेगें…
एडिटर गिल्ड कहता है…लिखित शिकायत मिलेगी तब लड़ाई लडेगें…
— punya prasun bajpai (@ppbajpai) August 3, 2018
‘द वायर’ में लिखे लेख में पुण्य ने ये बताया है कि किस तरह सरकार मीडिया पर नजर रख रही है और उसे अपने मुताबिक चलाने की कोशिश कर रही है। पुण्य ने लिखा है कि –
प्रधानमंत्री मोदी ही चैनलों की टीआरपी की ज़रूरत बन गए और प्रधानमंत्री के चेहरे का साथ सब कुछ अच्छा है या कहें अच्छे दिन की ही दिशा में देश बढ़ रहा है, ये बताया जाने लगा तो चैनलों के लिए भी यह नशा बन गया और ये नशा न उतरे इसके लिए बाकायदा मोदी सरकार के सूचना मंत्रालय ने 200 लोगों की एक मॉनिटरिंग टीम को लगा दिया गया।
बांटो और राज करो को पत्रकारों ने एजेंडा बनाया !
बाकायदा पूरा काम सूचना मंत्रालय के एडिशनल डायरेक्टर जनरल के मातहत होने लगा। जो सीधी रिपोर्ट सूचना एवं प्रसारण मंत्री को देते। और जो 200 लोग देश के तमाम राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों की मॉनिटरिंग करते हैं वह तीन स्तर पर होता है।
150 लोगों की टीम सिर्फ़ मॉनिटरिंग करती है, 25 मॉनिटरिंग की गई रिपोर्ट को सरकार के अनुकुल एक शक्ल देती है और बाकि 25 फाइनल मॉनिटरिंग के कंटेंट की समीक्षा करते हैं।
तंत्र मंत्र के लिए 14 वर्षीय लड़की के गले में डाली 9 सुई
उनकी इस रिपोर्ट पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तीन डिप्टी सचिव स्तर के अधिकारी रिपोर्ट तैयार करते और फाइनल रिपोर्ट सूचना एवं प्रसारण मंत्री के पास भेजी जाती. जिनके ज़रिये पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी सक्रिय होते और न्यूज़ चैनलो के संपादकों को दिशा निर्देश देते रहते कि क्या करना है, कैसे करना है।
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और कोई संपादक जब सिर्फ़ ख़बरों के लिहाज़ से चैनल को चलाने की बात कहता तो चैनल के प्रोपराइटर से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय या पीएमओ के अधिकारी संवाद कायम करते बनाते।
दवाब बनाने के लिए मॉनिटरिंग की रिपोर्ट को नत्थी कर फाइल भेजते और फाइल में इसका ज़िक्र होता कि आख़िर कैसे प्रधानमंत्री मोदी की 2014 में किए गए चुनावी वादे से लेकर नोटबंदी या सर्जिकल स्ट्राइक या जीएसटी को लागू करते वक़्त दावों भरे बयानों को दोबारा दिखाया जा सकता है।
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पूरा आर्टिकल पढने के लिए आप द वायर के इस लिंक पर जा सकते हैं-
http://thewirehindi.com/53257/punya-prasun-bajpai-abp-news-masterstroke-modi-govt-media/