अजय चौधरी
पहले इंजीनियर के प्रति लोगों का क्या सम्मान होता था ये हम सब जानते हैं। पता चलता था फलाने का बेटा इंजीनियर बन गया है, तो उसके प्रति हमारी आंखों में मान बढ़ जाता था और उसके परिवार का सीना छप्पन इंच का हो जाता था(ये मोदी वाला नहीं है)। लेकिन अब इन हालातों में बदलाव आया है और इंजीनियर तुच्छ प्राणियों में शामिल हो गए हैं। अब गली-गली,मोहोल्ले-मोहोल्ले में थोक के भाव इंजीनियर मिल जाएंगे। इसके पीछे कारण तो बहुत सारे रहे होंगे लेकिन सबसे बड़ा कारण है इंजीनियरों की बढ़ती फ़ौज और बढ़ती बेरोजगारी। जिसके बाद इस कोर्स से लोगों का रुझान लगातार घट रहा है और शार्ट टर्म कोर्सेज का कारोबार फलफूल रहा है।
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अजय चौधरीपहले इंजीनियर के प्रति लोगों का क्या सम्मान होता था ये हम सब जानते हैं। पता चलता था फलाने का बेटा इंजीनियर बन गया है, तो उसके प्रति हमारी आंखों में मान बढ़ जाता था और उसके परिवार का सीना छप्पन इंच का हो जाता था(ये मोदी वाला नहीं है)। लेकिन अब इन हालातों में बदलाव आया है और इंजीनियर तुच्छ प्राणियों में शामिल हो गए हैं। अब गली-गली,मोहोल्ले-मोहोल्ले में थोक के भाव इंजीनियर मिल जाएंगे। इसके पीछे कारण तो बहुत सारे रहे होंगे लेकिन सबसे बड़ा कारण है इंजीनियरों की बढ़ती फ़ौज और बढ़ती बेरोजगारी। जिसके बाद इस कोर्स से लोगों का रुझान लगातार घट रहा है और शार्ट टर्म कोर्सेज का कारोबार फलफूल रहा है।ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा तथ्य भी बता रहे हैं। “ऑल इंडिया कॉउन्सिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन” की एक घोषणा के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में तकनीकि के जिन पाठ्यक्रमों में छात्रों के दाखिले 30 प्रतिशत से भी कम रहे इस वर्ष से उनकी आधी सीटों को घटाया जा रहा है। नतीजतन इस साल देशभर में इंजीनियरिंग की 14.9 लाख सीट घटा दी गई हैं। ऐसे भी बहुत से कॉलेज हैं इंजीनियरिंग के जो या तो बंद हो गए हैं या फिर उन्होंने दूसरे पाठ्यक्रमों को पढ़ाना शुरू कर दिया है। ये कह सकते हैं कि आज से चार-पांच साल पहले इंजीनियरिंग का ‘स्वर्ण काल’ जा चुका है।पीएम अभी आईआईटी बॉम्बे के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्यातिथि पंहुचे थे। आईआईटी बॉम्बे के ऊपर इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक वहां की कैंपस प्लेसमेंट में साल दर साल कमी आई है। साल 2015-16 में जहां 1,143 छात्रों का चयन हुआ, वहीं 2016-17 में ये घटा और 1,114 छात्रों का चयन हुआ। इस वर्ष ये संख्या घटकर 1,101 रह गयी है। हालांकि छात्रों को मिलने वाले सालाना पैकेज में थोडी बढ़ोतरी जरूर दर्ज की गई है।
ये सिर्फ मैं नहीं कह रहा तथ्य भी बता रहे हैं। “ऑल इंडिया कॉउन्सिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन” की एक घोषणा के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में तकनीकि के जिन पाठ्यक्रमों में छात्रों के दाखिले 30 प्रतिशत से भी कम रहे इस वर्ष से उनकी आधी सीटों को घटाया जा रहा है। नतीजतन इस साल देशभर में इंजीनियरिंग की 14.9 लाख सीट घटा दी गई हैं। ऐसे भी बहुत से कॉलेज हैं इंजीनियरिंग के जो या तो बंद हो गए हैं या फिर उन्होंने दूसरे पाठ्यक्रमों को पढ़ाना शुरू कर दिया है। ये कह सकते हैं कि आज से चार-पांच साल पहले इंजीनियरिंग का ‘स्वर्ण काल’ जा चुका है।
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