सुजाता यादव
पिछले कुछ दिनों से रुपये की कीमत डाॅलर के मुकाबले नीचे गिरने की खबर अखबारों की हेडलाइन बनी हुई है। रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले तेजी से गिर रहा है, और आज रुपए की कीमत 72.46 रुपये के आसपास घूम रही है। रुपये की कीमत साल की शुरुआत में 64 के आस-पास थी। इस मुद्दे पर गहन चर्चा हो रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को इसे लेकर क्या कदम उठाने चाहिए।
आइए जानते हैं, रूपये की वैल्यू घटने के क्या हैं कारण-
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सही कहा है कि इसके बाहरी कारण हैं। विशेष रूप से वैश्विक पूंजी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में वापस आ रही हैं। ऐसा होना वास्तव में आश्चर्यजनक नहीं है क्योंकि कुछ समय से अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक बहुत ही आकर्षक विकल्प बन गई है। कुछ महीने पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कॉर्पोरेट कर दरों में भारी कमी की घोषणा की थी। हाल ही में भी यू.एस. फेडरल रिजर्व ने भी ब्याज दरों में वृद्धि की है। वैश्विक निवेशकों के लिए अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बहुत से आसान रास्ते खोले जा रहे हैं।
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डॉलर में अन्य सभी मुद्राओं के मुकाबले भी तेजी से बढोतरी हुई है। उदाहरण के लिए, यह यूरो और पाउंड दोनों के खिलाफ बढ़ गया है। विकासशील अर्थव्यवस्थाएं पर आमतौर पर इसका सबसे ज्यादा असर होता है। क्योंकि निवेशक इन बाजारों से अपना हाथ खींच लेते हैं। उनके आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता अपेक्षाकृत कम होती है। तुर्की और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों पर इसका असर भारत की तुलना में काफी अधिक हुआ है।
पेमेंट डेफिसिट भी है कारण
बहुत समय पहले, वो देश जो पेमेंट डेफिसिट मे जा रहे थे, उन्हें यह सलाह दी गई थी कि उनकी मुद्राओं को डिवैल्यू कर दे। इसका तर्क यह था कि अवमूल्यन विदेशी देशों में निर्यात की कीमत को कम करता है और अधिक कॉम्पिटिशन बनाकर निर्यात को बढ़ावा देता है। इसके साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था में आयात अधिक महंगा हो जाता है, जिससे आयात की मात्रा में कमी आ जाती है।
यह तर्क हमेशा काम नहीं करता है। उदाहरण के लिए, यदि कई देश एक ही समय में अवमूल्यन कर रहे हैं तो इन देशों में से कोई भी विदेशों में अपने निर्यात से लाभ नहीं उठा पाता है। भारतीय आयात की सूची में कच्चे तेल अब तक का सबसे बड़ा सामान है। चीन से आयात अब दुनिया के कुल आयात का दसवां हिस्सा है। लेकिन युआन( चीन की करंसी) ने डॉलर के मुकाबले भी कमी आ गई है। इसलिए इस बात पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि चीनी आयात पहले की तुलना में महंगा होगा।
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