सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से फ्रांस के साथ हुई राफेल एयरक्राफ्ट डील पर जवाब मांगा। केंद्र से पूछा कि सरकार ने कैसे राफेल डील की इसके बारे में पूरी जानकारी सीलबंद लिफाफे में दी जाए। इस संबंध में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस पर अगली सुनवाई 29 अक्टूबर को होगी।
यह आदेश पीआईएल की सुनवाई पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ से आया है, जिसमें केंद्र को बंद लिफाफे में 36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने से जुड़ी डील के बारे में बताना है। केंद्र की तरफ से उपस्थित अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने याचिकाओं को बर्खास्त करने की मांग की।
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से फ्रांस के साथ हुई राफेल एयरक्राफ्ट डील पर जवाब मांगा। केंद्र से पूछा कि सरकार ने कैसे राफेल डील की इसके बारे में पूरी जानकारी सीलबंद लिफाफे में दी जाए। इस संबंध में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस पर अगली सुनवाई 29 अक्टूबर को होगी।यह आदेश पीआईएल की सुनवाई पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ से आया है, जिसमें केंद्र को बंद लिफाफे में 36 राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने से जुड़ी डील के बारे में बताना है। केंद्र की तरफ से उपस्थित अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने याचिकाओं को बर्खास्त करने की मांग की।इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 10 अक्टूबर को वकील एम एल शर्मा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी थी, जिसमें भारत और फ्रांस के बीच राफले लड़ाकू जेट सौदे पर स्टे की मांग की थी। शर्मा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि 36 राफेल सेनानी जेट खरीदने के लिए इस समझौते को रद्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें भ्रष्टाचार हुआ है।चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने साफ कहा है कि वह सैन्य बल के लिए राफेल विमानों की उपयुक्तता पर कोई राय नहीं देना चाह रहे। बेंच ने कहा, ‘‘हम सरकार को कोई नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं, हम केवल फैसला लेने की प्रक्रिया की वैधता से संतुष्ट होना चाहते हैं। अदालत को विमान की कीमत और सौदे के तकनीकी विवरणों से जुड़ी सूचनाएं नहीं चाहिए।’आपको बता दें कि राफेल सौदे पर कांग्रेस लगातार केंद्र सरकार को घेर रही है। कांग्रेस का कहना है कि मोदी के कहने पर ही रिलायंस को राफेल डील में साझेदार बनाया गया। सितंबर 2016 में भारत-फ्रांस के बीच 36 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए डील हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सौदा 7.8 करोड़ यूरो (करीब 58,000 करोड़ रुपए) में फाइनल हुआ था।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने 10 अक्टूबर को वकील एम एल शर्मा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी थी, जिसमें भारत और फ्रांस के बीच राफले लड़ाकू जेट सौदे पर स्टे की मांग की थी। शर्मा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि 36 राफेल सेनानी जेट खरीदने के लिए इस समझौते को रद्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इसमें भ्रष्टाचार हुआ है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने साफ कहा है कि वह सैन्य बल के लिए राफेल विमानों की उपयुक्तता पर कोई राय नहीं देना चाह रहे। बेंच ने कहा, ‘‘हम सरकार को कोई नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं, हम केवल फैसला लेने की प्रक्रिया की वैधता से संतुष्ट होना चाहते हैं। अदालत को विमान की कीमत और सौदे के तकनीकी विवरणों से जुड़ी सूचनाएं नहीं चाहिए।’
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