अजय चौधरी
पिछले साल के मुकाबले इस साल फसलों के अवशेषों के जलने की घटनाओं में कमी आई है, ऐसा सरकार ही कह रही है। सितंबर 1 से लेकर 23 अक्तूबर तक पराली जलाने के मामलों में पिछले साल के मुकाबले इस साल 55 प्रतिशत की कमी आई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में पराली जलाने के अबतक 4,338 मामले देखने को मिले हैं, जो पिछले साल 11,573 थे। हरियाणा में इस साल 2,574 मामले सामने आए हैं, जबकि पिछले साल 4,017 मामले सामने आए थे। आज के इंडियन एक्सप्रेस में इस पर रिपोर्ट है,समय मिले तो पढनी चाहिए। दिल्ली में प्रदूषण के असली गुनहगार के थोडे करीब पहुंचने में आसानी होगी।
सिर्फ दिवाली के पटाखे और किसानों की पराली ही क्यों बनती है खलनायक
अजय चौधरीपिछले साल के मुकाबले इस साल फसलों के अवशेषों के जलने की घटनाओं में कमी आई है, ऐसा सरकार ही कह रही है। सितंबर 1 से लेकर 23 अक्तूबर तक पराली जलाने के मामलों में पिछले साल के मुकाबले इस साल 55 प्रतिशत की कमी आई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में पराली जलाने के अबतक 4,338 मामले देखने को मिले हैं, जो पिछले साल 11,573 थे। हरियाणा में इस साल 2,574 मामले सामने आए हैं, जबकि पिछले साल 4,017 मामले सामने आए थे। आज के इंडियन एक्सप्रेस में इस पर रिपोर्ट है,समय मिले तो पढनी चाहिए। दिल्ली में प्रदूषण के असली गुनहगार के थोडे करीब पहुंचने में आसानी होगी।पंजाब हरियाणा और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों को केंद्र ने इस साल 1,150 करोड की राशी जारी की है ताकि वो फसलों के अवशेषों को काटने वाली मशीनों को किसानों तक पहुंचा पाए, अभी तक कितनी ऐसी मशीन पहुंच पाई है, इसका कोई रिकोर्ड नहीं है। लेकिन यहां कि सरकारों का मानना है कि रियल टाईम मोनिटरिंग का उन्हें फायदा मिला है, वो मिनटों में आग लगे खेत तक पहुंच जाते हैं और उनका चालान कर देते हैं।अब इन आंकडों की मानें तो पराली जलाने के मामले घटे हैं, ऐसे में अगर दिवाली के आसपास इस साल फिर से दिल्ली की हवा पिछले साल की तरह प्रदूषित होती है तो उसका जिम्मेदार किसानों को माना जाए या किसी ओर को? हमें प्रदूषण के अन्य कारणों पर गौर फरमाना होगा।सुप्रीम कोर्ट के ही आदेशों को अगर देखा जाए तो समझ में आ सकता है कि नियम कितने सख्त हैं और कितने नियमों का पालन किया जा रहा है। कोर्ट ने पूरे दिल्ली एनसीआर में खुले में कूडा जलाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा रखी है। जिसमें खुले में जलने वाले जैव ईंधन, पत्ते टायर आदि शामिल हैं। इस पर नजर रखने और कार्यवाही करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय नगर निगमों की है।नियम तो ये भी है कि पार्कों में जमा होने वाले पत्ते आदि के कचरे को खाद में परिवर्तित किया जाए और इसे बागवानी के कार्यों में इस्तेमाल किया जाए। अगर सडक पर या पार्कों में कचरा या पत्ते जलते हैं तो उसके लिए स्थानीय नगर निगम ही जिम्मेदार है। सभी बागवानी विभागों की जिम्मेदारी है कि पार्कों में वो खाद बनाने के लिए गड्ढे बनाए। लेकिन बागवानी विभाग ने शायद ही ऐसा कहीं किया है। नगर निगमों कितने ऐसे लोगों पर कार्यवाही की है जो खुले में कचरा जलाते हैं, ये शायद आरटीआई से ही सामने आ पाएगा।निर्माण कार्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी और केंद्र सरकार की बहुत सी गाइडलाइन्स है लेकिन कितनी फॉलो होती है ये किसी को नहीं पता। दिल्ली एनसीआर में सबसे ज्यादा प्रदूषण कुछ है तो वो है धूल और मिट्टी का। लेकिन उसमें कोई कमी नहीं आ रही। दिसंबर 2015 में डस्ट पॉल्यूशन को कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और अन्य राज्य सरकारों को आदेश दिया था जिसके अनुसार निर्माण स्थलों को ढक कर रखना, निर्माण समाग्री उडे नहीं इसलिए उसपर पानी का छिडकाव करना, समय समय पर इसकी जांच करना ईपीसीए की जिम्मेदारी है। जरुरत पडने पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है, ये देखना होगा कि कितने लोगों पर जुर्माना लगाया गया है और कितने लोग अवहेलना करते हुए पकडे गए हैं।
पंजाब हरियाणा और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों को केंद्र ने इस साल 1,150 करोड की राशी जारी की है ताकि वो फसलों के अवशेषों को काटने वाली मशीनों को किसानों तक पहुंचा पाए, अभी तक कितनी ऐसी मशीन पहुंच पाई है, इसका कोई रिकोर्ड नहीं है। लेकिन यहां कि सरकारों का मानना है कि रियल टाईम मोनिटरिंग का उन्हें फायदा मिला है, वो मिनटों में आग लगे खेत तक पहुंच जाते हैं और उनका चालान कर देते हैं।
MeToo: राजनाथ सिंह ने बनाया GMO, यौन शोषण पर होगी रोकथाम
अब इन आंकडों की मानें तो पराली जलाने के मामले घटे हैं, ऐसे में अगर दिवाली के आसपास इस साल फिर से दिल्ली की हवा पिछले साल की तरह प्रदूषित होती है तो उसका जिम्मेदार किसानों को माना जाए या किसी ओर को? हमें प्रदूषण के अन्य कारणों पर गौर फरमाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के ही आदेशों को अगर देखा जाए तो समझ में आ सकता है कि नियम कितने सख्त हैं और कितने नियमों का पालन किया जा रहा है। कोर्ट ने पूरे दिल्ली एनसीआर में खुले में कूडा जलाने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा रखी है। जिसमें खुले में जलने वाले जैव ईंधन, पत्ते टायर आदि शामिल हैं। इस पर नजर रखने और कार्यवाही करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय नगर निगमों की है।
सबरीमाला मंदिर: अपने विवादित बयान पर केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दी सफाई
नियम तो ये भी है कि पार्कों में जमा होने वाले पत्ते आदि के कचरे को खाद में परिवर्तित किया जाए और इसे बागवानी के कार्यों में इस्तेमाल किया जाए। अगर सडक पर या पार्कों में कचरा या पत्ते जलते हैं तो उसके लिए स्थानीय नगर निगम ही जिम्मेदार है। सभी बागवानी विभागों की जिम्मेदारी है कि पार्कों में वो खाद बनाने के लिए गड्ढे बनाए। लेकिन बागवानी विभाग ने शायद ही ऐसा कहीं किया है। नगर निगमों कितने ऐसे लोगों पर कार्यवाही की है जो खुले में कचरा जलाते हैं, ये शायद आरटीआई से ही सामने आ पाएगा।
ड्राइवरों को नसीब भी नहीं होती छाछ और मलाई खा जाती है ऑनलाइन कैब सर्विस कंपनियां