अजय चौधरी
बिहार के गया में छठ पूजा के दौरान घाटों में पटाखे छोडने पर रोक लगा दी गई है। हालांकि ये रोक प्रदूषण के कारण नहीं सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखकर लगाई गई है। बिहार के पुर्णिया में भी पटाखों पर रोक लगाई गई है। मुज्जफरपुर में भी ये रोक है। और भी बहुत सी जगह होंगी जहां ये रोक होगी जिनकी जानकारी हमें नहीं है। लेकिन दिल्ली में ऐसी कोई रोक नहीं है, क्या यहां बिहार की आबादी का हिस्सा नहीं है? लेकिन बात ये है कि छठ पर पटाखे छोडना हमारी आस्था का हिस्सा है? और इसकी शुरुआत हुई कहां से?
ये सब सवाल इसलिए हैं क्योंकी पूरा देश खासतौर पर दिल्ली एनसीआर इन दिनों प्रदूषण की समस्या से गुजर रहा है। छठ वैसे तो पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार में खासतौर पर बनाया जाता है लेकिन दिल्ली एनसीआर में काफी संख्या में बिहार के लोग बसे हैं। इसलिए ये सब यहीं दिल्ली में यमुना किनारे घाटों पर और जगह जगह अस्थायी घाट बनाकर अपनी पूजा करते हैं। ऐसे में यहां दिल्ली एनसीआर में भी दिवाली के बाद बढ़े प्रदूषण स्तर में छठ पूजा भी आग में घी डालने का काम करती है। छठ पूजा के समय सूर्योदय से पहले बडी संख्या में पटाखे फोडे जाते हैं। ये पटाखे दिल्ली एनसीआर में दिवाली पर छोडे जाने वाले पटाखों से कुछ ही कम होते हैं। यानी की आपके सुबह उठने से पहले वातावरण में जहर घुल चुका होता है।
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अजय चौधरीबिहार के गया में छठ पूजा के दौरान घाटों में पटाखे छोडने पर रोक लगा दी गई है। हालांकि ये रोक प्रदूषण के कारण नहीं सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखकर लगाई गई है। बिहार के पुर्णिया में भी पटाखों पर रोक लगाई गई है। मुज्जफरपुर में भी ये रोक है। और भी बहुत सी जगह होंगी जहां ये रोक होगी जिनकी जानकारी हमें नहीं है। लेकिन दिल्ली में ऐसी कोई रोक नहीं है, क्या यहां बिहार की आबादी का हिस्सा नहीं है? लेकिन बात ये है कि छठ पर पटाखे छोडना हमारी आस्था का हिस्सा है? और इसकी शुरुआत हुई कहां से?ये सब सवाल इसलिए हैं क्योंकी पूरा देश खासतौर पर दिल्ली एनसीआर इन दिनों प्रदूषण की समस्या से गुजर रहा है। छठ वैसे तो पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार में खासतौर पर बनाया जाता है लेकिन दिल्ली एनसीआर में काफी संख्या में बिहार के लोग बसे हैं। इसलिए ये सब यहीं दिल्ली में यमुना किनारे घाटों पर और जगह जगह अस्थायी घाट बनाकर अपनी पूजा करते हैं। ऐसे में यहां दिल्ली एनसीआर में भी दिवाली के बाद बढ़े प्रदूषण स्तर में छठ पूजा भी आग में घी डालने का काम करती है। छठ पूजा के समय सूर्योदय से पहले बडी संख्या में पटाखे फोडे जाते हैं। ये पटाखे दिल्ली एनसीआर में दिवाली पर छोडे जाने वाले पटाखों से कुछ ही कम होते हैं। यानी की आपके सुबह उठने से पहले वातावरण में जहर घुल चुका होता है।खास बात यह है कि इस दौरान प्रदूषण बढने पर दिवाली, पराली और निजी वाहनों को तो जिम्मेदार माना जाता है लेकिन छठ पर होने वाली इस आतिशबाजी की तरफ किसी का ध्यान आकर्षित नहीं होता। सिर्फ प्रशासन का ही नहीं आम लोग और यहां तक की पर्यावरणविद भी इनके बारे में नहीं सोचते। लेकिन हमें बढ़ते प्रदूषण के साथ इन सब पर भी अपना ध्यान खींचना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि हमारा कोई त्यौहार जहरीले प्रदूषण का कारण न बने। हालांकि छठ पर पटाखे छोडना इतना अपना लिया है लोगों ने कि इस पर गाने की बने हुए हैं। हमें यूट्यूब पर इस तरह के दो गाने मिले हैं वो भी हम इस खबर के बीच में लगा रहे हैं।बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने अपने एक बयान में कहा था कि दिल्ली की आबादी का 20 फीसदी हिस्सा बिहार का है। नितीश कुमार ने कहा था कि अगर बिहार के लोग एक दिन भी काम करना बंद कर दें तो देश की राजधानी दिल्ली रुक जाएगी। 2012 में बिहार के स्थापना दिवस के 100 साल पूरे होने पर नितिश कुमार ने ये बात कही थी। अब 2018 है और दिल्ली में बिहार के लोगों की आबादी घटने की बजाए बढ़ ही होगी ये भी तय है। कहना गलत नहीं होगा ये आबादी दिल्ली की आबादी के कुल हिस्से का 20 प्रतिशत से बढ़कर 30 से 35 प्रतिशत हो गया होगा। बिहार की आबादी हर लिहाज से दिल्ली एनसीआर के लिए जरुरी हो गई है। तभी तो छठ घाट बनाने और वहां छठ पूजा करने का इंतजाम करने में बडे से बडे नेता जुटे हैं चाहे वो बिहार से संबध रखते हो या न रखते हो। मनोज तिवारी ऐसे ही नहीं दिल्ली से सांसद बन गए और दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष हैं। क्योंकी बिहार का एक बडा तबका यहां है जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता।ये आबादी न सिर्फ दिल्ली में अपने सांस्कृतिक त्यौहार बना रही है बल्कि दिल्ली को भी धीरे धीरे अपनी संस्कृती अपनाने को मजबूर करती जा रही है। धीरे धीरे दिल्ली भी बिहार के सांस्कृतिक उत्सवों के रंग में रंगी नजर आ रही है। कुछ सालों में बनने वाली नई दिल्ली आपको काफी लिहाज से बदली हुई नजर आने वाली है।ये तो साफ है कि छठ पूजा पर पटाखे फोडना कोई पंरपरा का हिस्सा नहीं है ये तो लोगों समय के हिसाब से अपनाते गए और धीरे धीरे ये इस त्यौहार का हिस्सा बन गए। लेकिन दिल्ली एनसीआर में रहने वाली बिहार की आबादी को ये समझना होगा कि प्रदूषण के गंभीर संकट से गुजर रही दिल्ली को पटाखे फोड और अधिक प्रदूषण के मुंह में धकेलना उचित नहीं है।“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”
खास बात यह है कि इस दौरान प्रदूषण बढने पर दिवाली, पराली और निजी वाहनों को तो जिम्मेदार माना जाता है लेकिन छठ पर होने वाली इस आतिशबाजी की तरफ किसी का ध्यान आकर्षित नहीं होता। सिर्फ प्रशासन का ही नहीं आम लोग और यहां तक की पर्यावरणविद भी इनके बारे में नहीं सोचते। लेकिन हमें बढ़ते प्रदूषण के साथ इन सब पर भी अपना ध्यान खींचना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि हमारा कोई त्यौहार जहरीले प्रदूषण का कारण न बने। हालांकि छठ पर पटाखे छोडना इतना अपना लिया है लोगों ने कि इस पर गाने की बने हुए हैं। हमें यूट्यूब पर इस तरह के दो गाने मिले हैं वो भी हम इस खबर के बीच में लगा रहे हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने अपने एक बयान में कहा था कि दिल्ली की आबादी का 20 फीसदी हिस्सा बिहार का है। नितीश कुमार ने कहा था कि अगर बिहार के लोग एक दिन भी काम करना बंद कर दें तो देश की राजधानी दिल्ली रुक जाएगी। 2012 में बिहार के स्थापना दिवस के 100 साल पूरे होने पर नितिश कुमार ने ये बात कही थी। अब 2018 है और दिल्ली में बिहार के लोगों की आबादी घटने की बजाए बढ़ ही होगी ये भी तय है। कहना गलत नहीं होगा ये आबादी दिल्ली की आबादी के कुल हिस्से का 20 प्रतिशत से बढ़कर 30 से 35 प्रतिशत हो गया होगा।
https://www.youtube.com/watch?v=vudSMA2Sx68