मंजिल तो तय है लेकिन ठिकाना तय नहीं,
रास्ते बहुत लेकिन जाना किस राह ये तय नहीं।
रास्ते बहुत लेकिन जाना किस राह ये तय नहीं।
मंजिल भी उतनी ही खूबसूरत होगी,
जितनी खूबसूरत राह, ये तय नहीं।
जितनी खूबसूरत राह, ये तय नहीं।
बिन तुम्हारे पार पा लूगां मैं,
इन अभिशापों के घेरों से, ये तय तो नहीं।
इन अभिशापों के घेरों से, ये तय तो नहीं।
राह की पीड़ा माप सके जो,
ऐसा कोई पैमाना हो, ये तय तो नहीं।
ऐसा कोई पैमाना हो, ये तय तो नहीं।
टूट जाए हौंसला, ये तय नहीं।
सह लें हर दर्द हम, ये तय नहीं।
सह लें हर दर्द हम, ये तय नहीं।
है यकीं मुझे पार कर लूगां ये मंझधार मैं,
साथ होगा तुम्हारा, ये तय तो नहीं।
साथ होगा तुम्हारा, ये तय तो नहीं।
पा लूंगा मैं वो, जो चाहा मैंने,
पा लूगां तुम्हें, ये तय तो नहीं।
पा लूगां तुम्हें, ये तय तो नहीं।
मंजिल तो तय है लेकिन ठिकाना तय नहीं,
रास्ते बहुत लेकिन जाना किस राह ये तय नहीं।मंजिल भी उतनी ही खूबसूरत होगी,
जितनी खूबसूरत राह, ये तय नहीं।बिन तुम्हारे पार पा लूगां मैं,
इन अभिशापों के घेरों से, ये तय तो नहीं।राह की पीड़ा माप सके जो,
ऐसा कोई पैमाना हो, ये तय तो नहीं।टूट जाए हौंसला, ये तय नहीं।
सह लें हर दर्द हम, ये तय नहीं।है यकीं मुझे पार कर लूगां ये मंझधार मैं,
साथ होगा तुम्हारा, ये तय तो नहीं।पा लूंगा मैं वो, जो चाहा मैंने,
पा लूगां तुम्हें, ये तय तो नहीं।रचना- अजय चौधरीकवि परिचय- अजय चौधरी पेशे से पत्रकार हैं। लेकिन उनकी लेखनी में भी कवि हद्य झलक ही जाता है। जब दिल खुश होता है तो कविताएं भी लिख लेते हैं। 20 जुलाई 1991 को उत्तरप्रदेश के शामली जिले में जन्मे अजय की प्रारंभिक शिक्षा हरियाणा के फरीदाबाद में ही हुई। व्यवसायी परिवार होने के बावजूद अजय ने लेखन को ही अपना पेशा चुना। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो शौक को ही अपना पेशा बना लेते हैं। उन्हीं में से अजय एक हैं जो कहते हैं “मुझे वो महफिल नहीं चाहिए जो पैसे से सजी हो”।शिक्षा- एम.ए (जनसंचार एंव पत्रकारिता)व्यवसाय- ऑनलाईन न्यूज चैनल दस्तक इंडिया के मुख्य संपादक के तौर पर कार्यरत© ये रचनाएं कॉपीराइट के अधीन हैं, बिना अनुमति इनका प्रकाशन या उपयोग वर्जित है।