हमारे देश के इतिहास ने ऐसे बहुत से नायक-नायिकाओं को भूला दिया है जिनका जज्बा और हिम्मत सलाम करने योग्य है। आज हम हर जगह फेमिनिज्म के नाम का बाजा बजते हुए देखते हैं लेकिन इतिहास में कुछ ऐसी नायिकाए थी जो फेमिनिज्म का सही उदाहरण है। कलकत्ता में जन्मी शांति घोष और सुनिता चौधरी हमारे देश की दो स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने महज 15 और 14 साल की उम्र में मजिस्ट्रेट बी जी स्टीवेंसन की हत्या कर दी थी।
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हमारे देश के इतिहास ने ऐसे बहुत से नायक-नायिकाओं को भूला दिया है जिनका जज्बा और हिम्मत सलाम करने योग्य है। आज हम हर जगह फेमिनिज्म के नाम का बाजा बजते हुए देखते हैं लेकिन इतिहास में कुछ ऐसी नायिकाए थी जो फेमिनिज्म का सही उदाहरण है। कलकत्ता में जन्मी शांति घोष और सुनिता चौधरी हमारे देश की दो स्वतंत्रता सेनानी थीं जिन्होंने महज 15 और 14 साल की उम्र में मजिस्ट्रेट बी जी स्टीवेंसन की हत्या कर दी थी।आजादी की लड़ाई की ये वीरांगनाए फैजुन्निसा बालिका विद्यालय की छात्रा थी।14 दिसम्बर 1931 को कुमारी शांति घोष और कुमारी सुनीति चौधरी ने मजिस्ट्रेट बी जी स्टीवेंसन से मिलने की अनुमति मांगी| जब उनसे मिलने का कारण पूछा गया तो बताया कि वो लडकियों की तैराकी प्रतियोगिता के सन्दर्भ में उनसे कुछ बात करना चाहती हैं। मजिस्ट्रेट के कमरे में पंहुचते ही उन्होंने गोली चला दी और स्टीवेंसन की वहीं मृत्यु हो गई। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फरवरी 1932 में उन्हें आजन्म काला पानी का दंड हुआ। सत्तावनी क्रांति के बाद यह पहली घटना थी जिसमे किसी महिला ने राजनीतिक हत्या की थी।बाद मे शांति घोष ने कहा कि उन्हें बहुत दुख है कि उन्हें फांसी की सजा नहीं दी गई। उनका सपना था कि आजादी की लड़ाई में वो शहीद हो जाएं। महज 15 साल की उम्र में जेल जाना और वहाँ पर शारिरिक एवम मानसिक अत्याचार को झेलने के लिए बहुत ही हिम्मत चाहिए। 1939 में, उनकी सजा के सात साल के बाद, उन्हें गांधी और ब्रिटिश भारत सरकार के बीच माफी वार्ता के कारण रिहा कर दिया गया।
आजादी की लड़ाई की ये वीरांगनाए फैजुन्निसा बालिका विद्यालय की छात्रा थी।14 दिसम्बर 1931 को कुमारी शांति घोष और कुमारी सुनीति चौधरी ने मजिस्ट्रेट बी जी स्टीवेंसन से मिलने की अनुमति मांगी| जब उनसे मिलने का कारण पूछा गया तो बताया कि वो लडकियों की तैराकी प्रतियोगिता के सन्दर्भ में उनसे कुछ बात करना चाहती हैं। मजिस्ट्रेट के कमरे में पंहुचते ही उन्होंने गोली चला दी और स्टीवेंसन की वहीं मृत्यु हो गई। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फरवरी 1932 में उन्हें आजन्म काला पानी का दंड हुआ। सत्तावनी क्रांति के बाद यह पहली घटना थी जिसमे किसी महिला ने राजनीतिक हत्या की थी।
बाद मे शांति घोष ने कहा कि उन्हें बहुत दुख है कि उन्हें फांसी की सजा नहीं दी गई। उनका सपना था कि आजादी की लड़ाई में वो शहीद हो जाएं। महज 15 साल की उम्र में जेल जाना और वहाँ पर शारिरिक एवम मानसिक अत्याचार को झेलने के लिए बहुत ही हिम्मत चाहिए। 1939 में, उनकी सजा के सात साल के बाद, उन्हें गांधी और ब्रिटिश भारत सरकार के बीच माफी वार्ता के कारण रिहा कर दिया गया।