एक ओर जहाँ सबरीमाला मंदिर पर पूरे देश में बहस चल रही है वहीं दूसरी ओर एक महिला ने दक्षिणी केरल राज्य में अगस्त्यकुडमम पहाड़ पर चढाई पूरी कर ली है। इसकी खास बात यह है कि अभी वहीँ केवल पुरुषों को अनुमति दी गई थी। इनका नाम धन्या सानल है औऱ उन्होंने चढ़ाई नवंबर में अदालत के फैसले के आने के बाद की है।
ब्रह्मचर्य से जुड़ी हिंदू ऋषि की प्रतिमा होने के कारण स्थानीय आदिवासी महिलाओं को इस पर चढ़ने की मनाही हैं। 38 वर्षीय सुश्री सानल ने बीबीसी को बताया कि उन्हें स्थानीय लोगों या प्रदर्शनकारियों द्वारा नहीं रोका गया था। प्रचारकों का कहना है कि लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने की लड़ाई में यह एक जीत है। नवंबर में, केरल के उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि महिलाएं 1,868 मीटर (6,128 फीट) चोटी पर जा सकती हैं। अदालत ने कहा कि ट्रेकिंग पर प्रतिबंध लिंग पर आधारित नहीं हो सकता है। यह फैसला एक महिला समूह द्वारा अदालत में याचिका दायर करने के बाद आया था। इस समूह ने सानल की चढ़ाई का स्वागत किया।
देशभक्ति से ओत-प्रोत, फिल्म मणिकर्णिका का ‘भारत’ गाना हुआ रिलीज
एक ओर जहाँ सबरीमाला मंदिर पर पूरे देश में बहस चल रही है वहीं दूसरी ओर एक महिला ने दक्षिणी केरल राज्य में अगस्त्यकुडमम पहाड़ पर चढाई पूरी कर ली है। इसकी खास बात यह है कि अभी वहीँ केवल पुरुषों को अनुमति दी गई थी। इनका नाम धन्या सानल है औऱ उन्होंने चढ़ाई नवंबर में अदालत के फैसले के आने के बाद की है।ब्रह्मचर्य से जुड़ी हिंदू ऋषि की प्रतिमा होने के कारण स्थानीय आदिवासी महिलाओं को इस पर चढ़ने की मनाही हैं। 38 वर्षीय सुश्री सानल ने बीबीसी को बताया कि उन्हें स्थानीय लोगों या प्रदर्शनकारियों द्वारा नहीं रोका गया था। प्रचारकों का कहना है कि लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने की लड़ाई में यह एक जीत है। नवंबर में, केरल के उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि महिलाएं 1,868 मीटर (6,128 फीट) चोटी पर जा सकती हैं। अदालत ने कहा कि ट्रेकिंग पर प्रतिबंध लिंग पर आधारित नहीं हो सकता है। यह फैसला एक महिला समूह द्वारा अदालत में याचिका दायर करने के बाद आया था। इस समूह ने सानल की चढ़ाई का स्वागत किया।भारत के पश्चिमी घाटों में एक बायोस्फीयर रिज़र्व के भीतर स्थित, अगस्त्यकुडम केरल की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है। इलाके में खड़ी और चट्टानी है और एक घने जंगल के अंदर पगडंडी है। ट्रेकर्स को चोटी पर चढने के लिए अक्सर दो या तीन दिन लग जाते हैं। इससे पहले उच्च न्यायालय ने तलहटी में रहने वाले आदिवासियों द्वारा किए गए दावे को खारिज कर दिया कि फैसले ने उनकी मान्यताओं को चोट पहुंचाई।