ये बात तो सभी जानते है कि हर देश में अलग-अलग धर्म और संस्कृति होने की वजह से वहां के रीति-रिवाज सब भिन्न-भिन्न होता है। कहीं शवों को दफनाया जाता है तो कही उनको जलाया जाता है। लेकिन एक ऐसा देश है जहां जमीन की कीमतें बढ़ने पर वहां के लोग शवों लाशों दफनाने के बजाय जला रहे है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हांगकांग में जमीनों के दाम इतने ज्यादा हो गए हैं कि लोग शवों को दफनाने के लिए जमीन खरीद नहीं पा रहे। एक छोटे से जमीन के टुकड़े के लिए लोगों को एक लाख 80 हज़ार पाउंड यानी करीब एक करोड़ 62 लाख रुपये चुकाना पड़ रहा है। इस समस्या से बचने के लिए लोगों ने दफनाने के बजाय लाशों का अंतिम संस्कार करना शुरू कर दिया है।
हालांकि, समस्या तब भी बनी हुई है क्योंकि लोग भस्म को भी दफनाना चाहते हैं। भस्म को दफन करने के लिए ज़मीन न मिलने के कारण वे इसे सरकारी लॉकरों में रख रहे हैं। स्थानीय मीडिया के अनुसार चार लाख लोग अभी भी भस्म को दफनाए जाने के इंतज़ार में हैं।
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ये बात तो सभी जानते है कि हर देश में अलग-अलग धर्म और संस्कृति होने की वजह से वहां के रीति-रिवाज सब भिन्न-भिन्न होता है। कहीं शवों को दफनाया जाता है तो कही उनको जलाया जाता है। लेकिन एक ऐसा देश है जहां जमीन की कीमतें बढ़ने पर वहां के लोग शवों लाशों दफनाने के बजाय जला रहे है।मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हांगकांग में जमीनों के दाम इतने ज्यादा हो गए हैं कि लोग शवों को दफनाने के लिए जमीन खरीद नहीं पा रहे। एक छोटे से जमीन के टुकड़े के लिए लोगों को एक लाख 80 हज़ार पाउंड यानी करीब एक करोड़ 62 लाख रुपये चुकाना पड़ रहा है। इस समस्या से बचने के लिए लोगों ने दफनाने के बजाय लाशों का अंतिम संस्कार करना शुरू कर दिया है।हालांकि, समस्या तब भी बनी हुई है क्योंकि लोग भस्म को भी दफनाना चाहते हैं। भस्म को दफन करने के लिए ज़मीन न मिलने के कारण वे इसे सरकारी लॉकरों में रख रहे हैं। स्थानीय मीडिया के अनुसार चार लाख लोग अभी भी भस्म को दफनाए जाने के इंतज़ार में हैं।लेकिन, समस्या यहीं खत्म नहीं होती सरकारी लॉकरों के लिए भी लोगों को सालाना 22 हज़ार रुपये चुकाने पड़ रहे हैं। हालांकि, इस पर भी लोगों को लॉकर नहीं मिल पा रहा। लॉकर पाने के लिए चार साल तक की वेटिंग है। इसलिए लोग प्राइवेट लॉकर में अस्थियों की भस्म को रखने के लिए मजबूर हैं। ये लॉकर भी जूते के डिब्बे के बराबर है।
लेकिन, समस्या यहीं खत्म नहीं होती सरकारी लॉकरों के लिए भी लोगों को सालाना 22 हज़ार रुपये चुकाने पड़ रहे हैं। हालांकि, इस पर भी लोगों को लॉकर नहीं मिल पा रहा। लॉकर पाने के लिए चार साल तक की वेटिंग है। इसलिए लोग प्राइवेट लॉकर में अस्थियों की भस्म को रखने के लिए मजबूर हैं। ये लॉकर भी जूते के डिब्बे के बराबर है।
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