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Dastak India > Home > होम > पलवल: आजादी के गुमनाम नायकों को समर्पित रहा नाटक दास्तान-ए-रोहनात
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पलवल: आजादी के गुमनाम नायकों को समर्पित रहा नाटक दास्तान-ए-रोहनात

dastak
Last updated: July 22, 2022 7:19 pm
dastak
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Azadi ke Gumnam Nayak Play
Photo Source- DIPRO Palwal
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पलवल में आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला में स्थानीय आईटीआई के हॉल में आयोजित शुक्रवार दोपहर बाद पूरी तरह से आजादी के गुमनाम नायकों को समर्पित रहा। सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग के कलाकारों ने जिस प्रकार दास्तान-ए-रोहनात नाटक का मंचन किया उसे वाकई रोहनात गांव के गुमनाम महानायकों को सच्ची श्रद्धांजलि कहा जा सकता है। विधायक दीपक मंगला ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत कर नाटक मंचन का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि 1857 की क्रांति के गुमनाम शहीदों की शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी शहादत हमेशा-हमेशा स्मरणीय रहेंगी।

विधायक दीपक मंगला ने हॉल में उपस्थिति को संबोधित करते हुए कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव पूरे देश में मनाया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के 75वें साल को अमृत महोत्सव के रूप में मनाने का निर्णय किया है। पूरे साल देश भक्ति के कार्यक्रम जहां देश की आजादी में जिन-जिन का भी योगदान रहा चाहे वह कोई व्यक्ति, गांव या कोई इलाका है, उन सब के इतिहास से आने वाली पीढिय़ों का को परिचित कराया जाए, जिससे उनको प्रेरणा मिले।

आज जिला प्रशासन पलवल द्वारा यहां इस नाटक का मंचन किया गया है। नाटक जिला भिवानी के गांव रोहनात के शहीदों पर आधारित था। नाटक के मंचन के माध्यम से रोहनात गांव के आजादी के संग्राम में योगदान की जानकारी दी गई। जिन लोगों ने शहादत दी उन लोगों का परिचय दिया गया। इस जानकारी के लिए विधायक दीपक मंगला ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल का आभार प्रकट करते हुए कहा कि वह पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने आजादी के बाद रोहनात गांव में जाने का काम किया।

23 मार्च 2018 को पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने स्वयं गांव के बुजुर्ग के हाथों राष्ट्रीय ध्वज फहराकर ग्रामीणों को गुलामी के अहसास से आजाद करवाया। इस गांव के लोगों का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान रहा है, जिसके कारण हम आज आजादी का जीवन जी रहे हैं। हम रोहनात गांव के योगदान को कभी भुला नहीं सकते। आजादी के दीवानों और शहीदों को याद करना हम सब देशवासियों का परम धर्म और कर्तव्य भी है।

उन्होंने कहा कि आज आयोजित रोहनात गांव की आजादी की गौरव गाथा हमने देखी। उनकी जितनी प्रसंशा की जाए उतनी कम है और आजादी के गुमनाम शहीदों जैसे रोहनात के शहीद, यह सब आने वाली पीढिय़ों को प्रेरणा देते रहेंगे। आजादी का लुफ्त आज हम सब लोग ले रहे हैं। इस आजादी को प्राप्त करने के लिए कई गुमनाम लोगों ने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। हमें अमर शहीदों को याद रखना चाहिए। जो देश अपने शहीदों को भूल जाता है वह देश कभी आगे नहीं बढ़ सकता। विधायक दीपक मंगला ने कहा कि वे आज तक रोहनात गांव को नहीं जानते थे, लेकिन आजादी के संघर्ष में इतनी बड़ी आहुति उस गांव के योद्धाओं ने दी, इस जानकारी के लिए वे मुख्यमंत्री को बधाई देते हैं।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने निर्देश दिए थे, कि रोहनात गांव की कहानी जन-जन तक पहुंचे। आठवीं की इतिहास की पुस्तक में शामिल अध्याय शीर्षक 1857 की क्रांति में रोहनात गांव का योगदान को ग्राम सभाओं में बच्चों द्वारा व्यापक रूप से बताया जाना चाहिए। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में रोहनात गांव की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी।

आपको बता दें कि इस नाटक का निर्देशन मनीष जोशी द्वारा किया गया है। कलाकारों द्वारा जिस प्रकार अपना रोल निभाया गया, वह दर्शकों को हैरान कर देने वाला था। लोग बिना पलक झपके टकटकी लगाए नाटक को लगातार देख रहे थे। कलाकारों के एक-एक संवाद पर बार-बार दर्शक तालियां बजाते दिखाई दिए। नाटक के मंचन को लेकर लोगों की दीवानगी इस कदर दिखाई थी कि समय से पहले ही हॉल खचाखच भर गया और जिन लोगों को बैठने की जगह नहीं मिली उन्होंने देशभक्ति की भावना का परिचय देते हुए खड़े होकर भी पूरा नाटक देखा। इतना ही नहीं, नाटक के बीच में कई बार दर्शकों ने भारत माता की जय, जय हिंद-जय भारत के जयकारे लगाते हुए देशभक्ति का परिचय दिया। दास्तान-ए-रोहनात को देखने के लिए कल बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।

यह नाटक भिवानी जिला के छोटे से गांव रोहनात के गुमनाम महानायकों पर आधारित था, जिन्होंने आजादी के लिए कड़ा संघर्ष किया लेकिन इतिहास के पन्नों में उनकी गौरव गाथा को वह स्थान नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे। ऐसे ही गुमनाम नायकों नोन्दा जाट, बिरड़ा दास और रूप राम खाती तथा रोहनात गांव के योद्धाओं द्वारा आजादी के लिए किए गए कड़े संघर्ष को इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इस नाटक में रोहनात गांव की क्रांति के साथ-साथ अंग्रेजों की कूटनीतिक चालों, डिवाइड एंड रूल पॉलिसी, अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार सहित कई अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत किया गया। इसके अलावा, नाटक में रोहनात गांव के कुंए का इतिहास भी दिखाया गया, कि किस प्रकार अंग्रेजों के अत्याचार के चलते वहां के गांव का कुआं जलियावाला बाग की तरह ग्रामीण योद्धाओं की लाशों से भर गया था।

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नाटक को जिस प्रकार से लिखा गया था, उसके एक-एक शब्द में क्रांति का भाव था और जिस प्रकार से कलाकारों द्वारा डायलॉग डिलीवरी (संवाद प्रस्तुति) की गई वह वाकई रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। विशेषकर बिरड़ा दास, नोंदा जाट तथा रूप राम खाती जिन का किरदार क्रमश: अतुल लांगया, यश राज शर्मा तथा बबलू द्वारा निभाया गया, को लोगो द्वारा खूब सराहा गया। इसी प्रकार ब्रिटिश ऑफिसर बने कामेश्वर ने हिंदी भाषा में जिस प्रकार अंग्रेजी टोन पकड़ते हुए डायलॉग डिलीवरी की वह काबिले तारीफ थी। नरसंहार की इस अनकही-अनसुनी कहानी ने जहां एक तरफ पूरे वातावरण को देशभक्ति के रंग में रंग दिया, वहीं दूसरी ओर नाटक में अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार को जिस प्रकार प्रदर्शित किया गया, उसे देखकर लोगों की आंखों से आंसू छलक पड़े।

नाटक का समापन कलाकारों द्वारा वंदे मातरम गीत की प्रस्तुति के साथ किया गया। जैसे ही कलाकारों द्वारा वंदे मातरम गीत शुरू किया गया, सभी दर्शक अपने-अपने स्थानों पर खड़े हो गए। भारत माता के जयकारे के साथ नाटक का समापन किया गया। सभी कलाकारों को जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया गया तथा कलाकारों की पीठ थपथपाते हुए उनकी हौसला अफजाई की गई।
इस अवसर पर पलवल निगरानी समिति के पूर्व चेयरमैन मुकेश सिंगला, डीआईपीआरओ राकेश गौतम, आईटीआई पलवल के प्रधानाचार्य भगत सिंह, प्रवक्ता बलबीर, दिनेश सहित आईटीआई के अध्यापकगण, विद्यार्थी व अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।

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