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Dastak India > Home > देश > क्या है खालिस्तान का इतिहास, जिसने बिगाड़े कनाडा और भारत के रिश्ते
देश

क्या है खालिस्तान का इतिहास, जिसने बिगाड़े कनाडा और भारत के रिश्ते

Dastak Web Team
Last updated: September 22, 2023 9:05 am
Dastak Web Team
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Khalistan
Photo Source - Google
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मुस्लिम लीग के घोषणा पत्र के जवाब में 20 मार्च 1940 में डॉक्टर वीर सिंह भट्टी ने कुछ पंपलेट छपवाए थे, जिनमें खालिस्तान शब्द का पहली बार इस्तेमाल हुआ था। खालिस्तान का मतलब है खालसाओं का देश अब यही खालिस्तान कनाडा और भारत के रिश्ते बिगाड़ने में लगा हुआ है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस स्टूडियो ने संसद में इल्जाम लगाया है खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह गुर्जर की हत्या में भारत का हाथ है। जब बात बिगड़ने लगी तो उन्होंने कहा कि उनका मकसद भारत को उकसाना नहीं था। हालांकि इस समय कनाडा और भारत के रिश्ते के जैसे हालात आज है, वैसे पहले कभी नही हुए। पहले दोनों मुल्कों ने एक दूसरे के टॉप डिप्लोमेट को बाहर निकाला, फिर अपने नागरिकों के लिए ट्रैवल एडवाइजरी भी जारी कर दी और अब अगले आदेश तक कनाडा के लिए वीजा सर्विस को निलंबित कर दिया गया है।

कनाडा में खालिस्तान गतिविधियां तेजी से बढ़ी-

पिछले कुछ सालों में कनाडा में खालिस्तान गतिविधियां तेजी से बढ़ती जा रही है। भारत इस मुद्दे को कई बार उठा चुका है हाल ही में G20 समिति के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रूडो के सामने भी यह मुद्दा रखा था। लेकिन वह भारत पर इल्जाम लगा रहे हैं। जिस खालिस्तान की वजह से आज भारत और कनाडा के रिश्ते खराब हुए हैं। उसका जन्म कैसे हुआ खाली स्थान का मतलब क्या है, आज इस लेख में हम जानेंगे। इसे समझने के लिए आपको समय में थोड़ा पीछे जाना होगा। जहां की कहानी शुरू होती है 31 दिसंबर 1929 से उस समय लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था‌। जिसमें मोतीलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज की मांग की। इसका विरोध किया एक मोहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग, दूसरा भीमराव अंबेडकर की अगुवाई वाले दलित समूह और तीसरा मास्टर तारा सिंह का शिरोमणि अकाली दल। पहली बार सिखों के लिए तारा सिंह ने अलग राज्य की मांग की थी।

पंजाब भी दो हिस्सों में बट गया-

1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब पंजाब भी दो हिस्सों में बट गया था। पंजाब का एक हिस्सा पाकिस्तान में गया तो दूसरा भारत में इसके बाद में अकाली दल ने सिखों के लिए अलग राज्य की मांग और तेज कर दी। किसी मांग को लेकर 1947 में पंजाबी आंदोलन शुरू हुआ। 19 साल तक अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चलाते रहे, आखिरकार 1966 में तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी मांगों को मान लिया। पंजाब को तीन हिस्सों में बांटा गया सिखों के लिए पंजाबी, हिंदी बोलने वालों के लिए हरियाणा और तीसरा हिस्सा चंडीगढ़ बना। जैसा कि पहले ही आपको बता चुके हैं कि खालिस्तान शब्द पहली बार 1940 में सामने आया था। आजादी के बाद भी लंबे समय तक सिखों के लिए अलग राज्य की मांग होती रही।

खालिस्तान नेशनल काउंसलिंग की स्थापना-

पंजाब का हिस्सा 1966 में सिखों को पंजाब तो मिल गया, इससे कुछ वक्त शांति भी रही। लेकिन विरोध अंदर ही अंदर उठता जा रहा था। अलग प्रदेश बनने के बाद 1969 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए इसके बाद चुनाव में टांडा विधानसभा सीट से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार जगजीत सिंह चौहान भी खड़े हुए थे। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा, फिर चुनाव में हारने के 2 साल बाद जगदीश सिंह चौहान ब्रिटेन चले गए और वहां जाकर खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की। 1971 में चौहान ने न्यूयॉर्क टाइम्स में खालिस्तान आंदोलन के लिए फंडिंग की मांग करते हुए एक विज्ञापन भी दिया था। 1977 में चौहान भारत लौटे और 1979 में वापस ब्रिटेन चले गए। वहां जाकर उन्होंने खालिस्तान नेशनल काउंसलिंग की भी स्थापना की। जिसके बाद चौहान ने कैबिनेट बनाई और खुद को रिपब्लिक ऑफ खालिस्तान का राष्ट्रपति घोषित कर दिया‌ उसके बाद खालिस्तान पासपोर्ट, खालिस्तान डॉलर और स्टांप भी जारी कर दिए गए। इतना ही नहीं ब्रिटेन और यूरोप के देशों में खालिस्तान एंबेसी भी खोल दी गई।

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पास-

पंजाब अलग प्रदेश बना तो फिर ज्यादा अधिकार की मांग उठने लगी। 1973 में अकाली दल ने पंजाब को ज्यादा अधिकार देने की मांग रख दी। पहले 1973 में फिर 1978 में कई दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पास किया, जिसमें पंजाब को ज्यादा अधिकार देने के सुझाव दिए गए थे। इस प्रस्ताव में सुझाया गया कि केंद्र सरकार का सिर्फ रक्षा संचार, विदेशी नीति और मुद्रा पर अधिकार हो बाकी सभी मामलों पर राज्य सरकार का अधिकार है। इस प्रस्ताव में पंजाब को और ज्यादा अधिकार यानी स्वतंत्रता देने वाली बात कही गई थी, अलग देश की बात नहीं थी।

धर्म युद्ध मोर्चा-

अगस्त 1982 में अकाली दाल के नेता प्रकाश सिंह और एचएस लोंगोवाल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को लागू करने, हरियाणा से पंजाबी भाषी इलाकों में मिलने, हिमाचल प्रदेश और सतलुज यमुना लिंक कैनाल की योजना को मुल्तानी करवाने के लिए भिंडरावाले के साथ मिलकर धर्म युद्ध मोर्चा चला दिया। उनकी ताकत बढ़ती जा रही थी, वह अकालियों के करीब था, लेकिन अप्रैल 1978 में कई कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें अकाली दल के 13 कार्यकर्ताओं की मौत हो गई। 80 के दशक की शुरुआत में पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगी। अप्रैल 1983 में पंजाब पुलिस के डीआईजीएसएस अटवाल की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस सबके लिए भिंडरावाले को जिम्मेदार ठहराया गया।

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ऑपरेशन ब्लू स्टार-

इस बीच भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना घर बना लिया, पंजाब में अलगाववाद और हिंसक घटनाएं बढ़ती जा रही थी। उन्हें रोकने के लिए भिंडरावाले को पकड़ा जाना जरूरी था, इसीलिए इंदिरा गांधी की सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार लॉन्च किया‌ इस ऑपरेशन के सैनिक कमांडर मेजर जनरल बराड़ का कहना था कि कुछ ही दिनों में खालिस्तान की घोषणा होने जा रही है। और उसे रोकने के लिए ऑपरेशन को जल्द से जल्द अंजाम देना होगा। 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया 18 जून 1984 को पंजाब में कर्फ्यू लगाया गया 4 जून को शाम से सेना ने गोलीबारी कर दी। अगले दिन सेना की गाड़ियों और टैंक विश्व मंदिर पहुंच गए। भीषण खून खराबा हुआ 6 जून को भिंडरावाले मारे गए।

खालिस्तान का समर्थन करने-

खालिस्तान विचारधारक समर्थकों की गिरफ्तारी और उन पर एक्शन की वजह से खालिस्तान आंदोलन सुस्त पड़ने लगा। हालांकि बीते कुछ सालों में यह दोबारा उठने लगा है। खालिस्तान का समर्थन करने वाले भारत से बाहर बैठे हुए हैं और वहीं से बैठकर भारत में खालिस्तान आंदोलन को भड़काते रहते हैं। भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं, वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत में अस्थिरता पैदा करने के लिए खालिस्तान एलिमेंट्स को बढ़ाती रहती है। कनाडा में अपना ठिकाना बनाए हुए हैं भिंडरावाले कमांडो फोर्स का मुखिया परमजीत सिंह पंजीयन 1994 से लाहौर में बैठा है। जनरल सिंह भिंडरावाले का भतीजा लखबीर सिंह लाहौर में बैठकर कथित तौर पर यूरोप और कनाडा में खालिस्तान ताकतों को एकजुट करता है।

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