दिल्ली के 150 वकीलों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ को एक लिखित प्रतिनिधित्व सौंपा है, जिसमें न्यायालयों में चल रही कुछ “अभूतपूर्व प्रथाओं” पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। यह कदम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत को उच्च न्यायालय द्वारा रोके जाने के बाद उठाया गया है।
वकीलों की चिंताएँ-
दिल्ली उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों के वकीलों ने अपने पत्र में कई मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया है:
1. जमानत आदेश पर रोक-
वकीलों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन ने आदेश अपलोड होने से पहले ही ED (प्रवर्तन निदेशालय) की याचिका पर सुनवाई की और केजरीवाल की रिहाई पर रोक लगा दी।
2. वकीलों के तर्कों का रिकॉर्ड न होना-
पत्र में कहा गया है कि न्यायाधीश वकीलों के तर्कों को अपने आदेशों में दर्ज नहीं कर रहे हैं, जो कि “न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार” हो रहा है।
3. जमानत मामलों में देरी-
ED और CBI से जुड़े मामलों में न्यायाधीश लंबी तारीखें दे रहे हैं और जमानत याचिकाओं का निपटारा नहीं कर रहे हैं।
वकीलों की अपील-
वकीलों ने अपने पत्र में कहा, “इस देश के लोग बड़ी उम्मीद और भरोसे के साथ अदालतों का रुख करते हैं। न्यायपालिका और कानूनी समुदाय को इस विश्वास को बनाए रखना चाहिए।”
उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया है कि वे निर्देश जारी करें कि सुनवाई के दौरान किए गए तर्कों को वकीलों के सामने और मामले को स्थगित करने से पहले दर्ज किया जाए।
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आम आदमी पार्टी (AAP) का पक्ष-
इस प्रतिनिधिमंडल में AAP के कानूनी प्रकोष्ठ के कई वकील भी शामिल थे। उनका कहना है कि ये प्रथाएँ न्याय के सिद्धांतों और स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के खिलाफ हैं।
न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल-
इस घटनाक्रम ने न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वकीलों का मानना है कि ऐसी प्रथाएँ लोगों के न्याय व्यवस्था में विश्वास को कमजोर कर सकती हैं।
वरिष्ठ वकील (नाम गोपनीय) ने कहा, “हमें उम्मीद है कि मुख्य न्यायाधीश इन चिंताओं पर गौर करेंगे और जल्द से जल्द सुधारात्मक कदम उठाएंगे। न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर है।”
यह मामला न केवल कानूनी जगत में, बल्कि आम जनता में भी चर्चा का विषय बन गया है। लोग सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं और न्यायपालिका से जवाब की मांग कर रहे हैं।
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क्या होगी CJI की प्रतिक्रिया-
अब देखना यह है कि मुख्य न्यायाधीश इन चिंताओं पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और क्या कदम उठाते हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखना हर लोकतांत्रिक देश के लिए महत्वपूर्ण है, और इस मामले में भारत कोई अपवाद नहीं है।
