Supreme Court: आज यानी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने पिछड़े समुदायों में हास्य पर पड़े लोगों को नौकरी और शिक्षा में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियां में उप वर्गीकरण (sub-categorization in SC/ST) को मंजूरी दे दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डिवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने छह 6:1 के बहुमत से यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इसमें न्याय मूर्ति बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई थी। 6 अलग-अलग फैसले लिखे गए यह फैसला एव चेन्नई बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2004 के फैसले को खारिज करता है।
उप वर्गीकृत और उप वर्गीकरण के बीच अंतर-
पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्याय मूर्ति सतीश चंद्र, न्यायमूर्ति पंकज मित्तल समेत अन्य न्यायाधीत सुनवाई के दौरान उपस्थित थे। केंद्र ने अदालत से कहा कि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियां में उप वर्गीकरण के पक्ष में है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा की उप वर्गीकृत और उप वर्गीकरण के बीच में अंतर है और राज्यों को आरक्षित श्रेणी के समुदायों को उप वर्गीकृत करना पड़ेगा। जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाभ ज्यादा पिछड़े समूह तक पहुंचे।
एससी-एसटी वर्ग के सदस्य-
उन्होंने आज सुबह कहा कि छह राय हैं, मेरी राय न्याय मूर्ति मनोज मिश्रा और मेरे लिए है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि एससी-एसटी वर्ग के सदस्य अक्सर व्यथागत भेदभाव की वजह से उन्नति की सीढ़ी नहीं चढ़ पाते हैं। अनुच्छेद 14 जाति के उप वर्गीकरण की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक साक्ष्य से यह पता चलता है कि दलित वर्ग एक समरूप वर्ग नहीं था। न्यायमूर्ति बीआर गवाई ने 1949 में डॉक्टर बी आर अंबेडकर के एक भाषण का हवाला दिया।
सामाजिक लोकतंत्र-
जिसमें उन्होंने कहा था, कि जब तक हमारे पास सामाजिक लोकतंत्र नहीं होगा, तब तक राजनीतिक लोकतंत्र का कोई फायदा नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ अनुसूचित जातियों द्वारा झेली जाने वाली कठिनाइयों और पिछड़ापन हर जाति के लिए अलग-अलग है। ईवी चिन्नैया का फैसला गलत था, इसके लिए यह तर्क दिया गया कि कोई पार्टी राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसी उपजाति को आरक्षण दे सकती है, लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं। आखरी उद्देश्य वास्तविक सामान्यता को साकार होना चाहिए।
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न्यायमूर्ति त्रिवेदी-
बहुमत के फैसले से सहमति जताते हुए, न्यायमूर्ति त्रिवेदी का कहना है कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बिना कोई कारण बताए मामले को पीठ को भेज दिया। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने बिना कोई कारण बताएं, एक औपचारिक आदेश पारित कर दिया। सिद्धांत हमारी कानूनी प्रणाली का मूल मूल्य है। इस मामले में भी चेन्नई पर पुनर्विचार करने का संदर्भ है कि बिना किसी कारण यह कैसै दे दिया गया है और वह भी फैसले के 15 साल बाद। अदालत का कहना है कि पिछले समुदायों में किसी भी उप वर्ग का निर्धारण कारण अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर किया जाना चाहिए। जिससे यह दर्शाया जा सके कि उपवर्ग के लिए आरक्षण पर्याप्त है।
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