Mahabharata: महाभारत को हम आमतौर पर पांडवों की कहानी के रूप में जानते हैं। उनके जीवन के उतार-चढ़ाव, वनवास और विजय की कहानी हर किसी को याद है। लेकिन क्या हम कौरवों के बारे में सब कुछ जानते हैं? सौ कौरवों में से दुर्योधन और दुःशासन के अलावा कितने नाम हमें याद हैं?
धर्म की आवाज(Mahabharata)-

कौरवों के तीसरे भाई विकर्ण की कहानी बेहद दिलचस्प है। अपने भाइयों के विपरीत, विकर्ण धर्म के मार्ग पर चलने वाले योद्धा थे। द्यूत सभा में जब द्रौपदी का अपमान हो रहा था और कुरु वंश के बड़े-बुजुर्ग मौन थे, तब विकर्ण ही थे, जिन्होंने अपनी भाभी का पक्ष लिया।
उन्होंने युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी को दांव पर लगाने के निर्णय का विरोध किया और बड़ों से न्याय की मांग की। हालांकि उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया गया, लेकिन उनके चरित्र की दृढ़ता स्पष्ट थी।
युयुत्सु, सत्य का साथी(Mahabharata)-

धृतराष्ट्र के एक अन्य पुत्र युयुत्सु की कहानी भी कम रोचक नहीं है। गांधारी की दासी सुघदा से जन्मे युयुत्सु को अपने सौतेले भाइयों के व्यंग्य का शिकार होना पड़ता था। शायद यही कारण था, कि उनकी सहानुभूति पांडवों के साथ थी।
उन्होंने पांडवों को दुर्योधन की कई साजिशों की जानकारी दी, जिनमें से एक ने भीम की जान भी बचाई। कुरुक्षेत्र के युद्ध में वे एकमात्र कौरव थे, जो पांडवों की ओर से लड़े।
दुःशला, शांति की प्रतीक(Mahabharata)-

सौ पुत्रों के बाद धृतराष्ट्र और गांधारी की एकमात्र पुत्री दुःशला की कहानी करुणा और आशा से भरी है। अपने भाइयों की लाड़ली और पांडवों की बहन के रूप में प्यार पाने वाली दुःशला का विवाह सिंधु नरेश जयद्रथ से हुआ, जो एक अहंकारी राजा था।
युद्ध के बाद-

महाभारत युद्ध में पति की मृत्यु और बाद में पुत्र सुरथ की मृत्यु के बाद भी दुःशला ने हिम्मत नहीं हारी। जब पांडव राजसूय यज्ञ कर रहे थे, वह अपने पौत्र को लेकर आई। बच्चे की मासूमियत देखकर अर्जुन ने उसे सिंधु का राजा बना दिया, जो शांति और सद्भाव का प्रतीक बन गया।
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वर्तमान में प्रासंगिकता-
इन कहानियों से हमें सीख मिलती है, कि हर व्यक्ति के जीवन में सही और गलत के बीच चुनाव करने का क्षण आता है। विकर्ण की तरह धर्म का साथ देना, युयुत्सु की तरह सत्य का मार्ग चुनना या दुःशला की तरह विपरीत परिस्थितियों में भी आशा नहीं खोना – ये सब आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।

महाभारत के ये कम जाने-पहचाने पात्र हमें सिखाते हैं, कि जीवन सिर्फ काले या सफेद रंग में नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अच्छाइयां और बुराइयां होती हैं और अंततः उनके चुनाव ही उनके चरित्र को परिभाषित करते हैं। दुःशला की कहानी विशेष रूप से यह दर्शाती है, कि 105 पुरुषों द्वारा छेड़े गए युद्ध को एक महिला शांति में बदल सकती है।
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