Social Discrimination: महानगर मुंबई से एक ऐसी घटना सामने आई है जो एक तरफ प्रेरणादायक है तो दूसरी तरफ हमारे समाज में मौजूद वर्गभेद की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। थाईरोकेयर के संस्थापक डॉ. ए. वेलुमणि ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक ऐसी घटना साझा की, जिसने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
Social Discrimination मेहनत की दास्तान-
मुंबई के टी2 टर्मिनल से एक ऑटो रिक्शा में सफर करते हुए डॉ. वेलुमणि की मुलाकात एक ऐसे ऑटो चालक से हुई, जिसका बेटा आईआईटी हैदराबाद में पढ़ाई कर रहा है। बातचीत के दौरान पता चला कि पिता अपने बेटे की शिक्षा के लिए पिछले 30 सालों से दिन-रात मेहनत कर रहा है।
डॉ. वेलुमणि ने लिखा, कि “जब मैंने पूछा आपका बेटा क्या करता है, तो वो बोले आईआईटी हैदराबाद, तीसरा वर्ष, मैंने पूछा आप रोज कितने घंटे ड्राइव करते हैं? उसने जवाब दिया 12 से 14 घंटे प्रतिदिन। मैंने पूछा इतने लंबे समय तक क्यों?” “उसने कहा – बेटे की फीस बहुत ज्यादा है।”
Social Discrimination होटल में भेदभाव-
लेकिन यह कहानी यहीं नहीं रुकती। जब डॉ. वेलुमणि मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) स्थित एक लग्जरी होटल पहुंचे, तो होटल के सुरक्षाकर्मियों ने ऑटो रिक्शा को अंदर जाने से रोक दिया। उन्हें बाकी का रास्ता पैदल चलकर तय करना पड़ा। सुरक्षाकर्मियों ने “होटल के नियमों” का हवाला देते हुए ऑटो चालक से रूखे व्यवहार किया।
Came for an event in Mumbai.
T2 terminal. Tried a rickshaw this time. Just for fun. Cool conversation.
Me: how many years driving.
He: > 30 yrs.
Me : Family?
He: wife and Son.
Me: What is son doing ?
He: IIT Hyderabad, 3rd year.
Me: how many hrs you drive daily?
He: 12 to… pic.twitter.com/qaQHArD8v8
— Dr. A. Velumani.PhD. (@velumania) February 7, 2025
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं-
इस घटना ने सोशल मीडिया पर तूफान ला दिया। एक यूजर ने लिखा, “सर, आपको होटल का नाम सार्वजनिक करना चाहिए। यह अछूत व्यवहार जैसा लगता है! अगला कदम यह होगा कि वे कम कीमत की कारों को भी अंदर नहीं आने देंगे क्योंकि वे माहौल खराब करती हैं!”
दूसरे यूजर ने टिप्पणी की, “मेहनत से भविष्य बनता है, लेकिन वर्ग की दीवारें अभी भी ऊंची खड़ी हैं। एक होटल कैसे तय कर सकता है कि कौन योग्य है और कौन नहीं?”
व्यापक चर्चा का विषय-
कई लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि जब आईआईटी के छात्रों के लिए शैक्षिक ऋण उपलब्ध है, तो ऑटो चालक को इतने लंबे समय तक काम क्यों करना पड़ रहा है। कुछ ने डॉ. वेलुमणि से पूछा कि क्या उन्होंने ऑटो चालक की वित्तीय मदद की।
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डॉ. वेलुमणि का नज़रिया-
यह पहली बार नहीं है जब डॉ. वेलुमणि ने सामाजिक वर्ग और मितव्ययिता पर चर्चा छेड़ी है। एक अन्य पोस्ट में, उन्होंने लक्जरी कारों के बजाय ओला और उबर का उपयोग करने के अपने फैसले का बचाव किया। उन्होंने लिखा, “आप जितना चाहें मेरा मजाक उड़ाएं, लेकिन मैं मितव्ययिता की सलाह देता रहूंगा।”
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि आर्थिक प्रगति के बावजूद हमारे समाज में वर्गभेद की जड़ें गहरी हैं। एक तरफ जहां एक पिता की मेहनत और समर्पण प्रेरणादायक है, वहीं दूसरी तरफ समाज में मौजूद असमानता चिंता का विषय है।
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