WHO ने पूरी दुनिया में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ने को लेकर सावधान किया हुआ है। बीते 28 दिनों के बीच पूरी दुनिया में साढ़े आठ लाख केस रिपोर्ट किए गए हैं, जो कि पिछले महीने के मुकाबले लगभग दोगुने हैं। इस दौरान कोरोना संक्रमित 3000 मरीजों की मौत भी हो चुकी है। 13 नवंबर से 10 दिसंबर तक 18000 लोगों को कोविड की वजह से आईसीयू में एडमिट करना पड़ा था। पिछले महीने की तुलना में 23% ज्यादा लोग अस्पताल पहुंच चुके हैं और 51% लोगों को आईसीयू तक जाना पड़ा है। यह हालत तब है जब केवल 36 देश में जो रेगुलर डाटा अपडेट कर रहे हैं। नवंबर के महीने में सिर्फ तीन प्रतिशत केस सामने आए थे। दिसंबर आते-आते यह 27% तक बढ़ चुके हैं। 18 दिसंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने JN.1 को वैरीअंट ऑफ इंटरेस्ट माना है। क्योंकि इस वेरिएंट के मामले तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं।
JN.1 ओम्निक्रोन का सब वेरिएंट-
दरअसल JN.1 ओम्निक्रोन का सब वेरिएंट B2.86 का एक म्यूटेशन है। एक स्टडी के मुताबिक, अभी तक दुनिया में सबसे ज्यादा मरीजों को कोरोना के वैरीअंट आफ इंटर स्टेट EG.5 ने अपना शिकार बनाया है। लेकिन अब JN.1 मजबूत होता जा रहा है और EG.5 के मामले काफी कम हो गए हैं। फिलहाल केरल से लेकर दिल्ली तक कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। केरल, कर्नाटक समेत तमिलनाडु में इस समय सबसे ज्यादा केस दर्ज किए गए हैं। भारत के कुल केस के 80% से ज्यादा मामले केरल में रिपोर्ट किए गए हैं।
उत्तर भारत में टेस्ट करवाने वालों की संख्या कम-
हालांकि दिल्ली समेत उत्तर भारत में टेस्ट करवाने वालों की संख्या कम है। इसलिए उत्तर भारत में आंकड़े कम नजर आ रहे हैं। डॉक्टर्स 5 दिन तक बुखार पकड़ में ना आने पर RTPCR टेस्ट करवाने की सलाह दे रहे हैं। जिससे की कोविड का पता लगाया जा सके। कहा जा रहा है की टेस्टिंग कम होने से नंबर कम दिख रहे हैं। लेकिन मामले असल में कहीं ज्यादा हो सकते हैं। ऐसे में सावधानी की जरूरत है अभी तक नया वेरिएंट जानलेवा साबित नहीं हुआ है। 26 लोगों की मौत का जो आंकड़ा सामने आया है, वह ज्यादातर गंभीर मरीज हैं।
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एम्स गोरखपुर की एक स्टडी-
लेकिन अगर वायरस तेजी से फैला तो खतरनाक हो सकता है। वहीं एम्स गोरखपुर की एक स्टडी के मुताबिक JN.1 के खिलाफ भी भारतीयों में पर्याप्त एंटीबॉडी मौजूद है। भारतीय कम्युनिटीज इंफेक्शन से लड़ने में काम आएगी। एम्स गोरखपुर एम्स दिल्ली के पास साथ मिलकर नए कोरोनावायरस पर काम कर रहा है। एम्स में कोरोना की पहली लहर से पांच शहरों के दो-दो हजार लोगों पर लगातार रिसर्च चल रही है। समय-समय पर उनकी एंटीबॉडी जांच की जाती है। 3 साल से चल रही इस जांच में सामने आया है कि 93% भारतीयों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी मौजूद है। तीसरी लहर के बाद की गई जांच में एंटीबॉडी पर्याप्त मात्रा में मिली है।
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