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Dastak India > Home > देश > शाह बानो से लेकर तीन तलाक तक: कैसे सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को दिलाया उनका अधिकार?
देश

शाह बानो से लेकर तीन तलाक तक: कैसे सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को दिलाया उनका अधिकार?

Admin
Last updated: July 10, 2024 8:02 pm
Admin
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Muslim Women Supreme Court
प्रतीकात्मक तस्वीर (Dastak Photo)
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भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत किया।

Contents
नया फैसला: गुजारा भत्ता का अधिकार-1986 के कानून पर टिप्पणी-मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का सफर-तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला-नए फैसले का महत्व-समाज पर प्रभाव-चुनौतियां और आगे का रास्ता-महिलाओं को मिला अधिकार-

नया फैसला: गुजारा भत्ता का अधिकार-

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने फैसला सुनाया कि:

  • मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को तलाक के बाद भी पति से गुजारा भत्ता मिलेगा
  • यह अधिकार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत है
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह दान नहीं, बल्कि एक अधिकार है

1986 के कानून पर टिप्पणी-

कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून से ऊपर नहीं होगा।

मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का सफर-

यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के लिए लंबे संघर्ष का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। आइए, इस सफर के कुछ प्रमुख मोड़ों पर नजर डालें:

शाह बानो केस (1985): न्याय की पहली किरण-

  • शाह बानो ने पति से गुजारा भत्ता मांगा
  • सुप्रीम कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला दिया
  • इस फैसले ने व्यापक विवाद खड़ा किया

1986 का कानून: पीछे हटने का प्रयास-

  • राजीव गांधी सरकार ने नया कानून बनाया
  • मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ते को सीमित किया गया
  • कानून को भेदभावपूर्ण माना गया

गूलबाई केस (1963): वैध निकाह की नींव-

  • मुस्लिम कानून के तहत वैध शादी के लिए दिशानिर्देश तय किए गए
  • मुस्लिम महिलाओं को अवैध या जबरन शादी से बचाने का प्रया

डेनियल लतीफी केस (2001): न्याय की वापसी-

  • 1986 के कानून को चुनौती दी गई
  • कोर्ट ने शाह बानो फैसले को बरकरार रखा
  • मुस्लिम महिलाओं के लिए लंबी अवधि के गुजारा भत्ते का रास्ता खुला

नूर सबा खातून केस (1997): संपत्ति में हक

  • मुस्लिम महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा मांगने का अधिकार मिला

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तीन तलाक पर ऐतिहासिक फैसला-

2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया, जो मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम था।

नए फैसले का महत्व-

बुधवार का फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत करता है:

  • तलाकशुदा महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी
  • समानता और सम्मान की दिशा में एक और कदम
  • धार्मिक और सामाजिक बाधाओं को दूर करने का प्रयास

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समाज पर प्रभाव-

यह फैसला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक बदलाव भी ला सकता है:

  • मुस्लिम समुदाय में महिलाओं की स्थिति में सुधार
  • शिक्षा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि
  • समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने की संभावना

चुनौतियां और आगे का रास्ता-

हालांकि यह फैसला एक बड़ी जीत है, लेकिन कुछ चुनौतियां अभी भी बाकी हैं:

  • कानून का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना
  • सामाजिक और धार्मिक रूढ़िवादिता से निपटना
  • महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना

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महिलाओं को मिला अधिकार-

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल उनके कानूनी अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि समाज में उनकी स्थिति को भी सुधारने का प्रयास करता है। हालांकि, वास्तविक बदलाव लाने के लिए कानून के साथ-साथ सामाजिक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन की आवश्यकता होगी।

TAGGED:supreme courtगुजारा भत्तातीन तलाकमुस्लिम महिला अधिकारशाह बानो केससुप्रीम कोर्ट
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