Mamata Banerjee’s Government: पश्चिम बंगाल में हाल ही में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या की घटना ने पूरे देश में गहरी चिंता और आक्रोश पैदा कर दिया है। इस घटना ने राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाए हैं और राष्ट्रपति शासन की अटकलों भी लगाई जा रही है। कोलकाता की एक युवा डॉक्टर के साथ हुई यह घटना एक बार फिर से यह सवाल खड़ा करती है कि राज्य में कानून-व्यवस्था कितनी मजबूत है। बलात्कार और हत्या की इस घटना ने न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश को हिला दिया है। पीड़िता की दर्दनाक हत्या ने पूरे समाज को झकझोर दिया है और न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन और धरने शुरू हो गए हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की चिंता–
इस मामले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर ठोस कदम उठाने की ज़रुरतों पर ज़ोर देते हुए कहा, “अब वह समय आ गया है कि भारत ऐसी विकृतियों के खिलाफ जागरूक हो और उन मानसिकताओं का मुकाबला करे जो महिलाओं को कमजोर और कम सक्षम मानती हैं।” राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर अपनी सार्वजनिक टिप्पणी से यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस मामले की गंभीरता को समझती हैं और इसे हल करने के लिए सभी को मिलकर काम करने की ज़रुरत है।
राज्य में राष्ट्रपति शासन की संभावना–
पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की अटकलें अब तेजी से बढ़ रही हैं। भाजपा ने ममता बनर्जी की सरकार की निंदा करते हुए आरोप लगाया है कि राज्य सरकार इस मामले में ठोस कदम उठाने में असमर्थ रही है। भाजपा ने राष्ट्रपति शासन की मांग की है और इस दिशा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की टिप्पणी को एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी को इस मुद्दे पर कठोर कदम उठाने की बजाय केवल बयानबाजी करने में विश्वास है।
आरोप-प्रत्यारोप–
राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह इस मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है। वहीं भाजपा ने कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को इस गंभीर मुद्दे को राजनीतिक फायदे के बजाय मानवता के दृष्टिकोण से देखना चाहिए। भाजपा ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस ने भी अपने शासनकाल में ऐसे मुद्दों को लेकर इसी प्रकार का खेल खेला था, और अब वही खेल भाजपा पर आरोपित किया जा रहा है।
संवैधानिक पहलू–
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने की शक्ति प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति को राज्य की सत्ता अपने अधीन लेने का अधिकार होता है यदि राज्य में संवैधानिक तंत्र के असफल होने की स्थिति उत्पन्न हो।
अगर राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो ममता बनर्जी के पास कोर्ट जाने का विकल्प रहेगा। भारतीय न्याय व्यवस्था ने पहले भी राष्ट्रपति शासन के फैसलों को पलटा है। उदाहरण के लिए, 2017 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को पलटकर हरीश रावत की सरकार को बहाल किया गया था। ममता बनर्जी भी कोर्ट में चुनौती देकर या अन्य राजनीतिक और जनसंपर्क गतिविधियों के माध्यम से अपने पक्ष को मजबूती से पेश कर सकती हैं।
राष्ट्रपति शासन का इतिहास–
पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का इतिहास भी लंबा है। 1962, 1968, 1970, और 1971 में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। सबसे हालिया राष्ट्रपति शासन 29 जून 1971 को लागू किया गया था, जो 20 मार्च 1972 तक चला। इन घटनाओं ने यह साबित किया है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में राष्ट्रपति शासन का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
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ममता बनर्जी की सरकार-
अब सवाल यह है कि क्या पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू होगा या ममता बनर्जी की सरकार इस स्थिति से उबर पाएगी? राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की टिप्पणी और भाजपा की मांग के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो यह राज्य की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है और आगामी चुनावी परिदृश्य को भी प्रभावित कर सकता है।
पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की अटकलों के बीच यह महत्वपूर्ण होगा कि राज्य की राजनीति और कानून-व्यवस्था की स्थिति पर नजर रखी जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस गंभीर मुद्दे पर उचित और शीघ्र न्याय मिले।
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