भारत की भूमि पर कई रहस्य छिपे हुए हैं, लेकिन लोनार झील (Lonar Lake) की कहानी आज भी वैज्ञानिकों और इतिहासकारों के लिए रहस्य से भरी हुई पहेली है।
कैसे बनी लोनार झील?
करीब 52,000 साल पहले, एक विशाल उल्कापिंड (meteorite) धरती से टकराया और इस टक्कर से बना प्राकृतिक गड्ढा आज की लोनार झील है। यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी हाइपर वेलोसिटी क्रेटर लेक है, जो पूरी तरह बेसाल्टिक चट्टानों पर बनी है – जोकि एक ज्वालामुखी की विशेषता होती है।
वैज्ञानिकों के लिए रहस्य
- झील का पानी दो हिस्सों में बंटा है — एक हिस्सा अत्यधिक खारा (alkaline) और दूसरा अम्लीय (acidic) है। दुनिया में ऐसा संयोजन कहीं और नहीं मिलता।
- झील के पानी में जैविक जीवन (microbial life) ऐसे हैं जो किसी और पारिस्थितिकी तंत्र में नहीं पाए जाते। NASA और ISRO ने भी यहां अध्ययन किया है।
- उल्कापिंड के अवशेष आज तक नहीं मिले हैं, जो कि एक वैज्ञानिक पहेली है।
धार्मिक और पौराणिक महत्त्व
लोनार झील को स्थानीय लोककथाओं में दैत्य लोनासुर से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने इस राक्षस को इसी स्थान पर मारा था। झील के किनारे स्थित दौजेश्वर, विष्णु और शिव मंदिर 13वीं शताब्दी की स्थापत्य कला के गवाह हैं।
कम जानी गई बातें
- यह भारत का एकमात्र झील है जो उल्का टकराव से बनी है।
- यहाँ की मिट्टी और खनिज NASA के अंतरिक्ष अनुसंधान में काम आते हैं।
- झील का रंग मौसम के अनुसार बदलता रहता है — कभी नीला, कभी हरा, कभी गुलाबी। 2020 में इसका रंग गुलाबी हो गया था, जिसने सबको चौंका दिया।