Greensand Project : CO2 को दूसरे देशों से खरीद कर समुद्र नीचे दफनाने वाला पहला देश बना Denmark!

Greensand Project Denmark: डेनमार्क दूसरे देशों से आयातित कार्बन डाइऑक्साइड को स्टोर करने की परियोजना पर काम कर रहा है। ऐसा करने वाला डेनमार्क दुनिया का पहला देश बन जाएगा।

Updated On: Mar 9, 2023 12:08 IST

Dastak

Photo Source- Twitter

Greensand Project Denmark: डेनमार्क दूसरे देशों से आयातित कार्बन डाइऑक्साइड को स्टोर करने की परियोजना पर काम कर रहा है। ऐसा करने वाला डेनमार्क दुनिया का पहला देश बन जाएगा। डेनमार्क ने इस परियोजना के तहत उत्तरी सागर के नीचे 1800 मीटर कार्बन डाइऑक्साइड को स्टोर करने की योजना को शुरु किया है। ऐसे में विश्व के सभी देश जलवायु चुनौती का सामना करने के लिए  डेनमार्क के इस कदम की प्रशंसा कर रहे हैं।

हर साल 8 टन CO2 किया जाएगा स्टोर-

"ग्रीनसैंड" परियोजना के तहत उत्पादन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की मात्रा को कम करने में मदद के लिए CO2 को जमीन में जमा किया जाएगा। ऐसा करने के लिए दो कंपनियां इनिओस और विंटर्सहॉल मिलकर काम कर रही हैं। ये कंपनियां CO2 को एक संपूर्ण तेल क्षेत्र की साइट पर इंजेक्ट करने पर काम रही हैं।  उम्मीद है कि 2023 तक आठ मिलियन CO2 प्रतिवर्ष समुद्र तले स्टोर कर दिया जाएगा।

प्रोजेक्ट ग्रीन्सैंड पर काम कर रहा डेनमार्क भविष्य में आने वाली जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए  इस जमा की गई CO2 का इस्तेमाल कर सकता है। इस परियोजना में 23 डेनिश और अंतर्राष्ट्रीय भागीदार हैं जो इसके परिवहन, भंडारण और निगरानी का कार्य मिलकर कर रहे हैं।  डेनमार्क और दुनिया भर की कंपनियां इस संगठन की सदस्य हैं, जिनमें अनुसंधान संस्थान, विश्वविद्यालय और स्टार्टअप भी शामिल हैं।

पर्यावरण की मदद करने के लिए है परियोजना-

परियोजना पर्यावरण की मदद के लिए कुछ करने की कोशिश कर रही है। सौर सेल सिस्टम स्थापित किए जा रहे हैं, अपतटीय पवन फार्म बनाए जा रहे हैं, और देश भी इलेक्ट्रिक कारों पर स्विच कर रहे हैं। लेकिन डेनमार्क को लगता है कि यह वैश्विक जलवायु चुनौती को हल करने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। उनके अनुसार हमें कार्बन डाइऑक्साइड को स्रोतों से प्राप्त करने और इसे संग्रहीत करने की आवश्यकता है।

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क्या है प्रोजेक्ट ग्रीन्सैंड डेनमार्क-

प्रोजेक्ट ग्रीन्सैंड डेनमार्क में सबसे उन्नत CO2 भंडारण परियोजना है। इसमें 2025 और 2026 में हर साल 1.5 मिलियन टन CO2 और 2030 तक हर साल 8 मिलियन टन CO2 तक स्टोर करने की क्षमता है।

ये परियोजना अभी भी विकास में है, और वर्तमान में इसका चरण 2 चल रहा है। यहीं पर परियोजना का परीक्षण किया जाता है और जनता को दिखाया जाता है।

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