अजय चौधरी
बात 2014 की है जब डीडी न्यूज पर लिए गए मोदी के 56 मिनट के इंटरव्यू को केवल 34 मिनट दिखाया गया। तब डीडी पर सरकार के प्रभुत्व के आरोपों के साथ उसकी स्वायत्ता की मांग ने तेजी पकड़ी। तब अकेला एक डीडी आरोपी बना था। लेकिन 2019 की लहर में डीडी कहीं खो सा गया और सरकार ने भी उसकी जरुरत को जरुरत न समझा। क्योंकि प्राईवेट चैनलों की भक्ताई की आंधी में डीडी की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया।
हो सकता है सरकार डीडी के घीसे पिटे हथियारों(कैमरा आदि) से डर रही हो या फिर कोई इकोनोमिक मॉडल ऐसा है जिसे डीडी पर लागू नहीं किया जा सकता था। इसलिए प्राईवेट प्लेयरों का सहारा लिया गया जो डीडी से कहीं ज्यादा प्रभावी साबित हुए। उनमें न्यूज एजेंसी एएनआई और जी न्यूज लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। इनके अलावा बाकी न्यूज चैनलों में भी अपने आप को परम भक्त बताने की होड मची है।
अच्छा होता अगर प्रधानमंत्री इसे प्रेस वर्ता की जगह राष्ट्र के नाम संबोधन बोल देतेएएनआई सोशल मीडिया समेत टीवी मीडिया को तेजी से खबर सप्लाई करता है। जिसका महत्व प्रधानमंत्री भली भांती जानते हैं। एएनआई के खोजी पत्रकारों की ही देन है कि केदारनाथ में एकांत में तप कर रहे प्रधानमंत्री को भी उन्होंने खोज निकाला और वीडियो वायरल कर दिया। इसके लिए न्यूज एजेंसी ईनाम की हकदार है।
अब डीडी इस रेस में क्यों पीछे रहा? क्या डीडी के हथियार जंगी हो गए हैं? ऐसा नहीं है कि डीडी पर अब कुछ दिखाया नहीं जाता। दिखाया सब जाता है लेकिन दूसरों से वीडियो उठाकर। ये अच्छी बात है कि डीडी का डायरेक्ट इस्तेमाल कम दिख रहा है लेकिन इसके पीछे कारण प्राईवेट खिलाडियों को ज्यादा भरोसेमंद माना जाना है।
लोकसभा चुनाव 2019: मुस्लिम वोटर्स को लेकर गरमाई सियासतजिस तरह अन्य सरकारी कंपनियां हाशिये पर जा रही है क्या वैसे ही हश्र प्रसार भारती का हो रहा है जो किसी को दिखाई नहीं दे रहा? उदाहरण के तौर पर आप बीएसएनएल को ले सकते हैं। डिजीटल इंडिया का कोई असर बीएसएनएल पर नहीं पडा और वो ऐसे हाशिये पर गया कि अपने ही कर्मचारियों की सैलरी न दे पाया। जबकि जियो 65% की बढ़ोतरी से आगे बढ़ रहा है।
प्रसार भारती के हश्र की कहानी उसका रिवन्यू खुद बयां कर रहा है। 2012-13 में प्रसार भारती ने 1422 का लक्ष्य रखा और 1,134 करोड़ रुपए अर्जित किए। जबकि 2017-18 में प्रसार भारती ने कुल 9,77 करोड़ रुपए ही अर्जित किए।
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