जो हाथ अपने आप चलने लगते थे, प्रियंका रेड्डी मामले पर उनसे कुछ लिखा नहीं जा रहा

Updated On: Nov 30, 2019 12:36 IST

Dastak

प्रतीकात्मक तस्वीर ( Photo Source- http://www.incirlik.af.mil)

अजय चौधरी

ajay chaudhary chief editor dastak india
Photo- Ajay Chaudhary

जो हाथ कोई भी प्रसंग देखते ही अपने आप चलने लगते हैं वो आज थमे हुए हैं। सुबह से हैदराबाद की #PriyankaReddy की खबर देख और पढ़ रहा हूँ, स्तब्ध हूँ। लगभग हर मुद्दे पर लिखता हूँ लेकिन सोच नहीं पा रहा इसपर क्या और कैसे लिखूं। मैं रेप और हत्या की वारदात को यहां फिर से बयां नहीं करना चाहता।

लिखने में समय नहीं लगता, पता ही नहीं चलता हाथ कब-कब में सोचते हुए ढेर सारा लिख देते हैं। लेकिन काफी देर से सोचे जा रहा हूँ, लिखूं तो लिखूं क्या। जरूरी है क्या? हां मेरी खामोशी भी तो गलत है। इकॉनमी स्लो डाउन है और महाराष्ट्र जैसे बड़े मुद्दे भी हैं लिखने के। ये सब पढ़ ही रहा था कि कांचीपुरम की रोजा के साथ भी ऐसा ही हुआ, खबर मिली। दोनों को ट्रेंड किया जा रहा है और दोषियों के खिलाफ फांसी से भी सख्त सजा की मांग की जा रही है जैसे हर बार की जाती है, दिल्ली की निर्भया के समय भी की गई थी।

सड़क पर लटका कर मार देना चाहिए, लिंग काट देना चाहिए, हर बार पढ़ता और सुनता हूँ। बुरा लग सकता है, पर मेरे अनुसार ये कोई ईलाज नहीं है। क्योंकि ये वो मामले हैं जो आपके सामने आ गए नहीं तो हजारों ऐसे मामले हैं जो सामने नहीं आ पाते और न आप अफ़सोस दर्ज कर पाते हैं और न ही पुलिस एफआईआर। कमी जहां है वहां तक हमारी पहुंच नहीं है।

एक लीटर दूध, एक बाल्टी पानी और 85 बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़

जिस मानसिकता को कोसना है उस तक ये पोस्ट नहीं जाएगी, जानता हूँ। गई भी तो वो इसे नहीं पढेंगे। जो पढ़ेगा वो अपनी प्रोफाइल पर ब्लैक फोटो लगा सकता है और 2 या 10 दिन बाद उसे हटा सकता है। ऐसी घटना का समाज पर इससे ज्यादा असर नहीं हो पाता। इस बार तो वो भी नहीं बदली है। अगर मैं यहां किसी जाति या धर्म के बारे में लिख दूं तो सैंकड़ो से हजारों लोग मेरी प्रोफाइल पर आकर मुझे गाली दे सकते हैं और एकजुट हो सकते हैं। सड़क पर उतरकर मेरा पुतला भी फूंक सकते हैं। खुद देखें गोडसे के कितने चाहने वाले इस घटना से स्तब्ध हैं। वो साध्वी प्रज्ञा के साथ हैं लेकिन हैदराबाद की प्रियंका रेड्डी के साथ नहीं। प्रियंका को हिदुंत्व का चेहरा बन जाना चाहिए था और गोडसे को देशभक्त बता दिया होता तो आज ऐसी नौबत नहीं आती और सारे कट्टरपंथी उसके लिए आज देश जाम किए होते।

महिला जबतक संभोग की वस्तु की नजर से देखी और पेश की जाती रहेगी तबतक रेप करने वालों की मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा। महिला ही महिला की दुश्मन भी है। लड़की के जन्म लेने पर सबसे पहले अनर्थ का दुःख उसकी माँ से लेकर परिवार की अन्य महिलाओं को होता है। जिस लड़के के जन्म पर खुशियां मनाई जाती है उसका कभी ध्यान नहीं रखा जाता, वो कहाँ जा रहा है और किससे मिल रहा है और किस मानसकिता को विकसित कर रहा है। क्योंकि वो लड़का है, इसलिए उसपर ध्यान रखने की जरूरत नहीं होती। लेकिन रेप करने वालों के भी परिवार होते हैं, वो एलियन नहीं होते, बस उनपर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया होता।

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