आशीष गौतम
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया, समाज में गरीबों और मजलूमों की आवाज उठाने वाले पत्रकार हैं, जो शोषितों की परेशानियों को सरकार के सामने और सरकार की बाते लोगों तक पहुंचाते हैं। आज वही पत्रकार सरेराह लोगों के सामने मार दिया जाता है। यह बात कहीं न कहीं समाज की बुराइयां और सरकार की लचीले कानून व्यवस्था को दर्शाती है।
गाजियाबाद के एक निडर पत्रकार विक्रम जोशी को बीच सड़क पर हत्या हो जाने से लोगों को सनसनी में डाल दिया। उस पत्रकार की क्या गलती थी जिसने अपने परिवार की रक्षा के लिए आवाज उठाई। उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि आज परिवार की रक्षा में उसके कदम उसकी मौत की वजह बन जाएंगे। पत्रकार विक्रम जोशी की भांजी के साथ छेड़खानी के विरोध में जान गवाना ये बताता है कि राज्य में बदमाशों के मनोबल कितने बढ़े हैं।
जैसा कि सीसीटीवी में कैद है कि बीते दिनों विक्रम जोशी रात में अपने दो बेटियों के साथ बाइक से जा रहे थे। तब बदमाशों ने उन पर गोलियां दागनी शुरू कर दी। जिसमे वह गंभीर रूप से घायल हो गए और अस्पताल में उपचार कर दौरान उनकी मौत हो गई। इस शर्मनाक घटना से देशभर के पत्रकारों में रोष है, साथ ही साथ उनमें डर भी है।
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एक सर्वे के मुताबिक, साल भर में 150 से अधिक पत्रकारों की हत्या होती है। सरकार भी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कई वादे करती है और भूल भी जाती है। यह कोई पहली घटना नही है जब दिनदहाडे किसी पत्रकार या आम जनता को निशाना बनाया गया हो। कई ऐसी वारदाते हुई जिसने लोगों को अंदर तक झकझोडा है। क्या गुंडों की ताकत इतनी बढ़ गयी है जो एक पत्रकार की कलम की निब तोड़ देता है। और प्रशासन मूक बनकर देखती रहती है।
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स-2019 की माने तो भारत में पत्रकारों की स्वतंत्रता और उनकी सुरक्षा दोनों ही खतरे में है। भारत और मेक्सिको में पत्रकारों के साथ ऐसे पिटाई जैसे अपराध पहली बार नहीं हुए हैं। बल्कि इससे पहले भी पत्रकार के साथ यह रवैया अपनाया जा रहा है। सरकार को सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है।
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