मैं निर्मला सीतारमण की बात से सहमत हूँ

Updated On: Sep 12, 2019 20:03 IST

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अजय चौधरी

ajay chaudhary chief editor dastak india
Photo- Ajay Chaudhary

मैं निर्मला सीतारमण की बात से सहमत हूँ, उनके अनुसार अगर लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है और वो अब कार न खरीद कर ओला-उबेर और मेट्रो में जाना पसंद कर रहे हैं तो इससे अच्छी बात हो भी क्या सकती है। प्रदूषण भी कम होगा और सड़कों पर वाहनों की संख्या भी अगर सरकार लोगों की इस सोच को सार्वजनिक परिवहन तक ले आए।

वित्त मंत्री के बयान    का मतलब तो यही है कि लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर आना चाहते हैं और आपके पास इस क्षेत्र में सुविधाओं का टोटा है। इसलिए वो प्राइवेट टैक्सियों में अधिक सफर कर रहे हैं जहां उन्हें बैठने के लिए अच्छी सीट और AC मिल रहा है। मेट्रो में सीट और भीड़ की कोई गारंटी नहीं है लेकिन AC यहां भी है और समय पर मंजिल तक पंहुचने का भरोसा भी।

अब अगर अन्य सार्वजनिक सेवा भारतीय रेल और विभिन्न राज्यों की बस सेवा का रुख करें तो हर तरह से लाचारी की तस्वीरें जहन में आ जाती है। जाने की जबतक मजबूरी न हो तो बसों और लोकल ट्रेनों से पैर अपने आप पीछे हो जाते हैं। रोजाना ऑफिस में समय पर जाने का प्रण लिया व्यक्ति इनसे जी चुराता है। और जो कार में सफर करने वाला है वो इनमें आएगा ही क्यों?

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दिखाने के लिए दिल्ली में डीटीसी की एसी बस सर्विस है। अब किसी रूट पर आप इस बस में सफर करने का प्लान बना भी लें तो घण्टेभर के इंतजार में आपको एक बस मिल भी जाए तो उसमें जल्दी से सीट मिल जाए इस बात की क्या गारंटी? हां एप्प बेस्ड शटल बस सर्विस में AC सीट की गारंटी मिलती है टाइम भी फिक्स है।

आप ही बताएं सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन देने के मकसद से गाड़ी में चलने वाला कोई व्यक्ति बस के इंतजार में घण्टेभर धूप और धूल में खड़ा क्यों रहेगा? और बस आने पर उसमें धक्के भी क्यों खाए? वो ओला उबेर कर अपना सफर पूरा करेगा ही क्योकिं उसके पास एक अच्छा विकल्प है।

मेरे अनुसार सड़कों पर जितनी अधिक कतारें सार्वजनिक परिवहन और साइकिलों की होगी हम उतने ही विकसित होने की तरफ अग्रसर होंगे। ये तभी संभव हो पाएगा जब हमारे हुक्मरानों की सोच उस तरफ जाएगी और वो इसके लिए कदम उठाएंगे। उन्हें अभी बस ऑटो सेक्टर की चिंता है जिसका भी निदान करने के लिए उनके पास कोई फार्मूला नहीं है।

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