अजय चौधरी
किसान की कोई जाति और पार्टी नहीं होती, जो उसके साथ है वो उनका है। कानून जमींदार किसानों को अपने खिलाफ लग रहा है तो उनसे बातचीत होनी चाहिए, अभी होनी चाहिए। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान जमींदार है। इसलिए दिक्कत कानून से इन्हें ही हैं बाकि भारत के किसानों को हो या न हो।
कहते हैं सरकार को परेशानी भी इन संपन्न जमींदारों से ही है। हो सकता है सरकार चाहती हो ये किसान जमीन किराए पर दे दें और बाकि भारत के अधिकतर किसानों की तरह उसमें मजदूर हो जाएं। खुद की बोएंगे तो एमएसपी नहीं देंगे। क्योकिं नए कानून में कॉन्ट्रैक्ट खेती भी है।
प्राइवेट मंडी खुलेंगी जो टैक्स फ्री होंगीं। दूसरा प्राइवेट खिलाड़ी गेहूं, दलहन आदि अवश्य वस्तुओं को भी किसी भी रेट बेच सकते हैं। उधर किसान के लिए एमएसपी नहीं इधर आम जनता महँगा किसी भी रेट खरीदे कोई रोक नहीं। कितना ही भंडारण हो वो भी अब कानूनी है। जो पहले कालाबाजारी कही जाती थी।
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किसानों का असल डर टैक्स फ्री प्राइवेट मंडी खुल जाने के बाद सरकारी मंडी के बंद न हो जाने का है, क्योकिं ऐसा होने पर उन्हें प्राइवेट कंपनियों को ओने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होना पड़ेगा। इसी के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जुड़ा है। अब तक मांग न्यूनतम मूल्य बढ़ाए जाने की रही है अब लड़ाई इसके अस्तित्व बचाने की चल रही है।
किसान चाहे जो भी करें लेकिन अडानी के गोदम और अंबानी की दुकान पूरी तरह तैयार है। जिसका एहसास किसानों को तो हो रहा है लेकिन आम ग्राहक को तब होगा जब उसके ऑप्शन्स खत्म हो जाएंगे।
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