अजय चौधरी
बल्लभगढ़ के निकिता हत्याकांड जैसा जघन्य दिनदहाड़े कुछ नहीं हो सकता। ऐसे मामलों में चुप्पी साधना भी अपराधियों को समर्थन देने जैसा होता है। व्यस्ताओं के चलते भी इसीलिए ही इसपर लिख रहा हूँ।
मैं नहीं जानता कि इस मामले का आरोपी लव जिहाद करना चाहता था या नहीं लेकिन ये जानता हूँ कि इस इलाके में मेवाती गैंग काफी एक्टिव है। पूरे दिल्ली एनसीआर में यहां के लोग वारदातों को अंजाम देते हैं।
जब हत्यारे के परिवार में से विधायक हो और इलाका मेवात हो तो फिर उसके हौंसले दिन-दहाड़े लड़की की जान लेने के हो जाएं तो उसमें हमें चौकना नहीं चाहिए। अपराध का दोषी वो माहौल भी है जिसमें अपराधी तौसीफ पला बढ़ा है। वो लोग भी हैं जो इस घटना के दौरान बड़े आराम से सड़क से गुजर रहे थे।
टीवी चैनलों का लव जिहाद का एंगल अपना हो सकता है लेकिन उसमें एक अच्छाई है कि वो इस बहाने रिपोर्टिंग करने तो आए। इससे निकिता तोमर को इंसाफ़ मिलेगा इसकी संभावनाएं प्रबल होती हैं। हालांकि पिता भी लव जिहाद का आरोप लगा रहे हैं क्योंकि मामला बहुत पुराना है।
हमें अपराधियों का धर्म देखकर मामले पर चुप्पी या फिर आक्रामक नहीं होना चाहिए। हमें अपराध देखकर दोषियों के विरुद्ध करवाई की आवाज उठानी चाहिए सिर्फ हत्या का ये मामला नहीं बनना चाहिए। क्योंकि ये सिर्फ हत्या है भी नहीं। ये उन लड़कियों के परिवार के अरमानों की हत्या है जो अपनी बच्ची को कॉलेज भेज पढ़ाना चाहते हैं लेकिन अब सहमें हुए हैं।
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हर जगह माहौल महानगरों जैसा नहीं होता। छोटे कस्बों में लड़की को दबंग अपराधियों से बचाकर पढ़ाना बड़ा काम है। राह बदल-बदल कर कॉलेज पूरा करना और परिवार का एक सदस्य हमेशा सुरक्षा में तैनात रहने का जोखिम बड़े शहरों में बैठे कुछ लोग शायद ही समझें।
दोषियों को कड़ी सजा इसलिए भी जरूरी है ताकि ऐसी सोच रखने वाला कोई व्यक्ति आगे से किसी के साथ ये दोहराने का सोचे भी न। असहमति को ही आखरी फैसला समझे, सहमति न होने पर मौत के घाट न उतारें, एसिड अटैक न करे।
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