सुप्रीम कोर्ट ने 1994 का फैसला जिसमें कहा गया था कि “मस्जिद नमाज़ के लिए आवश्यक नहीं है”, इस पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यह इस बात पर फैसला लिया गया था कि जमीन सीमित है। तीन न्यायाधीशीय खंडपीठ द्वारा दिए गए 2: 1 के बहुमत के फैसले में कहा गया कि “सभी मस्जिद, सभी चर्च और मंदिर समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हैं।” तीन जजों की बेंच में भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नाज़ीर शामिल थे।
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सुप्रीम कोर्ट ने 1994 का फैसला जिसमें कहा गया था कि “मस्जिद नमाज़ के लिए आवश्यक नहीं है”, इस पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि यह इस बात पर फैसला लिया गया था कि जमीन सीमित है। तीन न्यायाधीशीय खंडपीठ द्वारा दिए गए 2: 1 के बहुमत के फैसले में कहा गया कि “सभी मस्जिद, सभी चर्च और मंदिर समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हैं।” तीन जजों की बेंच में भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नाज़ीर शामिल थे।शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि यह फैसला अयोध्या भूमि जमीन मामले में फैसला सुनाने के लिए प्रासंगिक नहीं था। इसके साथ ही इस बात की भी जानकारी दी कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में अपील की सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू होगी। 1994 में, पांच न्यायाधीशीय संविधान खंडपीठ ने राज्य द्वारा एक धार्मिक स्थान के अधिग्रहण के सवाल पर विचार किया था जिसके बाद अयोध्या में भूमि अधिग्रहण के लिए कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। इस फैसले में, कोर्ट ने तर्क दिया था कि नमाज कहीं भी पेश किया जा सकता है और इसके लिए एक मस्जिद आवश्यक नहीं है।आपको बता दें कि 1992 में अयोध्या में 16 वीं शताब्दी की मस्जिद, बाबरी मस्जिद को कुछ लोगो ने नष्ट कर दिया गया था। उनका मानना था कि अयोध्या में भगवान राम के लिए एक मंदिर बनाया जा सके इसलिए इसे नष्ट करना जरुरी था। इसके बाद 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तीन पक्षों के बीच समान रूप से जमीन का विभाजन किया था – सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला।
शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि यह फैसला अयोध्या भूमि जमीन मामले में फैसला सुनाने के लिए प्रासंगिक नहीं था। इसके साथ ही इस बात की भी जानकारी दी कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में अपील की सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू होगी। 1994 में, पांच न्यायाधीशीय संविधान खंडपीठ ने राज्य द्वारा एक धार्मिक स्थान के अधिग्रहण के सवाल पर विचार किया था जिसके बाद अयोध्या में भूमि अधिग्रहण के लिए कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था। इस फैसले में, कोर्ट ने तर्क दिया था कि नमाज कहीं भी पेश किया जा सकता है और इसके लिए एक मस्जिद आवश्यक नहीं है।
आपको बता दें कि 1992 में अयोध्या में 16 वीं शताब्दी की मस्जिद, बाबरी मस्जिद को कुछ लोगो ने नष्ट कर दिया गया था। उनका मानना था कि अयोध्या में भगवान राम के लिए एक मंदिर बनाया जा सके इसलिए इसे नष्ट करना जरुरी था। इसके बाद 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तीन पक्षों के बीच समान रूप से जमीन का विभाजन किया था – सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला।
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