कहते हैं कि बदलाव कहीं-भी, किसी भी उम्र में शुरु किया जा सकता है और इसी का जीता जागता उदाहरण हैं डॉ. एनपी गाढ़े। 2000 में जल विभाग के इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त गाढ़े जी ने फैसला किया कि वो अच्छी हवा में सैर के लिए मध्यप्रदेश के बालाघाट के श्मशान की आबोहवा को बदल देंगे। इसी जुनुन से खुद को भर के उन्होंने श्मशान को एक खूबसूरत जगह में बदल दिया। भले ही उन्होंने कभी बागवानी ना की हो पर उनकी हिम्मत और दृढ-निश्चय से उन्होंने इस जगह को बदल डाला।
2000 मेंं उन्होने श्मशान के चार एकड़ जमीन पर 50 हजार से अधिक पौधे लगाए और तब से वो रोजाना वहाँ पर सफाई करते हैं और पेड़-पौधों को पानी देते हैं। हर काम में शुरुआत मे अकेले ही चलना होता है पर बाद मे लोग खुद ही साथ जुड़ जाते हैं। ऐसा ही हुआ, औऱ धीरे-धीरे उनके साथ भी 10 लोग जुड़ गए। अब इस काम को करने में औऱ भी आसानी हो गई औऱ वहां लोग हर सुबह सैर करने भी जाते हैं। इतना ही नहीं स्वच्छता के लिए उनके प्रयास से यह जगह पार्क का रूप ले चुकी है। चांदनी, मोगरा, चंपा-चमेली जैसे फूल के पौधों सो मानो वहाँ की हवा मे खुशबू भर गई हो।
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कहते हैं कि बदलाव कहीं-भी, किसी भी उम्र में शुरु किया जा सकता है और इसी का जीता जागता उदाहरण हैं डॉ. एनपी गाढ़े। 2000 में जल विभाग के इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त गाढ़े जी ने फैसला किया कि वो अच्छी हवा में सैर के लिए मध्यप्रदेश के बालाघाट के श्मशान की आबोहवा को बदल देंगे। इसी जुनुन से खुद को भर के उन्होंने श्मशान को एक खूबसूरत जगह में बदल दिया। भले ही उन्होंने कभी बागवानी ना की हो पर उनकी हिम्मत और दृढ-निश्चय से उन्होंने इस जगह को बदल डाला।2000 मेंं उन्होने श्मशान के चार एकड़ जमीन पर 50 हजार से अधिक पौधे लगाए और तब से वो रोजाना वहाँ पर सफाई करते हैं और पेड़-पौधों को पानी देते हैं। हर काम में शुरुआत मे अकेले ही चलना होता है पर बाद मे लोग खुद ही साथ जुड़ जाते हैं। ऐसा ही हुआ, औऱ धीरे-धीरे उनके साथ भी 10 लोग जुड़ गए। अब इस काम को करने में औऱ भी आसानी हो गई औऱ वहां लोग हर सुबह सैर करने भी जाते हैं। इतना ही नहीं स्वच्छता के लिए उनके प्रयास से यह जगह पार्क का रूप ले चुकी है। चांदनी, मोगरा, चंपा-चमेली जैसे फूल के पौधों सो मानो वहाँ की हवा मे खुशबू भर गई हो।शुरुआत में पौधों को पशुओ ने नष्ट भी किया लेकिन उन्होने हिम्मत ना हारी औऱ ट्री-बार्डर लगवा कर अपने काम को जारी रखा। नोकरी से सेवानिवृत्त होकर समाज में बदलाव लाने की उनकी इस कोशिश ने बहुत लोंगो को प्रेरणा दी है। 72 साल की उम्र मे पौधों को लिए गढ्ढे खोदना कोई आसान काम नहीं है। पर गाढें जी के इस जुनुन ने सब आसान कर दिया।