हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि मुस्लिम पुरुष को इस्लामी कानून के तहत बहुविवाह करने का अधिकार है। लेकिन उन्हें अपनी सभी पत्नियों के साथ एक जैसा व्यवहार करना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो यह क्रूरता के दायरे में आता है। पत्नी की ड्यूटी है कि वह अपनी पत्नी की सही तरह से देखभाल करें। हाई कोर्ट ने इस मामले में फैमिली कोर्ट के उस फैसले को बाहर रखा। जिसमें क्रूरता पर पहली पत्नी के फेवर में तलाक डिक्री पारित की गई थी। इस तथ्य पर गौर कर करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पति और उसके परिवार वालों ने शुरुआत में पहली पत्नी को प्रताड़ित किया। गर्भावस्था में भी उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ।
पहली पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया-
इससे परेशान होकर पहली पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया और बाद में मुस्लिम पुरुष ने फिर शादी कर ली और दूसरी पत्नी के साथ वह रहने लगा। हाई कोर्ट का कहना है कि पुरुष ने अपनी पहली पत्नी और दूसरी पत्नी को एक तरह ट्रीट नहीं किया। जबकि इस्लामी कानून के मुताबिक, पुरुष के लिए यह बाध्यता है कि वह सभी पत्नियों को एक ही तरह से रखें।
इलाहाबाद हाई कोर्ट-
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा कहा गया की क्रूरता के मामले में वैवाहिक संबंध बहाल करने का आदेश पारित करने से पहले अन्य परिस्थितियों पर भी गौर करना चाहिए। उसके साथ ही हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। जिसमें अलग रह रही पत्नी के कहने पर पारिवारिक अदालत द्वारा अपनी शादी को तोड़ने को चुनौती दी गई थी।
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न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह-
न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंड पीठ ने कहा हेमसिंह उर्फ़ चिंटू द्वारा दायर की गई अपील को खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने कहा कि एक बार क्रूरता साबित होने पर तलाक मांगा जा सकता है। हालांकि उसके बाद पारिटियां अपना आचरण कैसे रखेंगे यह बड़ा सवाल हो सकता है।
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