आजकल एक विचित्र होड़ लगी है, हर वर्ग अपने आप को पिछड़ा वर्ग कहलवाने की फ़िराक में है और इस दौड़ में अब जाट समुदाय के लोग भी शामिल हो गए हैं। पिछडे वर्ग को मिलने वाली सुविधाएँ हैं ही ऐसी कि लोगों को अब पिछड़ा कहलवाने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती जैसे मतलब पड़ने पर गधे को बाप बनाने में कोई शर्म नहीं। १९७२ में जब मैंने अंतरजातीय विवाह किया तब मेरी मौसी ने कहा “चल एक तो फायदा है तुझे सर्विस आसानी से मिल जायेगी”। मैंने पूछा क्यों तो उन्होंने कहा “जाट पिछड़े वर्गमें आते हैं न”। लेकिन ऐसा नहीं था पर यह ही सच है कि उन्हें सदा ही पिछड़ा माना जाता रहा है। इस जाति के लोग अधिकतर गाँवों में रहते हैं और खेती किसानी का काम करते हैं। जिसमें पहनने ओढ़ने और पढ़ने का अधिक अवसर नहीं था। “मिटटी के साथ मिट्टी होना पड़ता है” कहावत को चरितार्थ करते हुए आज कृषि घाटे का सौदा हो गयी है। किसान फसल बेच के बीज खाद और कीटनाशक की कीमत नहीं निकाल पाता और आत्म हत्या जैसे कदम के लिए मजबूर हो जाता है। पर इस कौम की अनख प्रसिद्द है ये अपने आप को लड़ाकू (मार्टियल कम्युनिटी) मानती है। जो सेना में रह कर देश की रक्षा करने में और रणक्षेत्र से बाहर अपने वचन की रक्षा करने को तत्पर रहती है। पर आज ये अपने आप को पिछड़ा महसूस कर रही है। क्योंकि इनके समकक्ष ही सैनी, गुर्जर, यादव और मेव थे जो कृषि से जुड़े व्यवसाय जैसे दूध बेचना(जिसे जाट निकृष्ट मानते थे) और कृषि से ही जुड़े थे। इनका रहन सहन भी जाटों जैसा ही था और आज भी काफी हद तक ऐसा ही है। वो नौकरी और पढाई के क्षेत्र में इस कौम से काफी आगे निकल गए। यही देखकर अब जाट कौम ने ही पिछड़े वर्ग में आरक्षण को लेकर अपनी मांग उठाई है। और यह अनुचित भी नहीं है। क्योंकि जब किसी को पिछड़ा कहना होता है तो शहरी लोग कहते हैं “जाट जाट सा”। कोई यह नहीं कहता- गूजर सा या सैनी सा या अहीर सा। क्योंकि हर गाँव वाला पिछड़ा, मैला कुचैला व्यक्ति जाट ही कहलाता है। इसका यही अर्थ निकलता है कि ये सब जातियां समकक्ष ही हैं। फिर इन्हे आरक्षण देने में आपत्ति क्यों ? जबकि जाटों ने कभी भी किसी को आरक्षण देने का विरोध नहीं किया। और अगर उनको आरक्षण मिल जाता है तो किसी अन्य आरक्षित जाति पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। अब आरक्षण कि भी कोई सीमा होनी चाहिए। जिन्हे पहले से आरक्षण मिला है और जिन्होंने एक विशेष सामाजिक और आर्थिक स्थान प्राप्त कर लिया है, उनका आरक्षण समाप्त कर दिया जाना चाहिए। अब आरक्षित वर्ग में आने वाले जिन लोगों के बच्चे प्रशासनिक सेवाओं में आ चुके हैं। डॉक्टर, इंजीनियर और वकील बन चुके या फिर रिज़र्व कोटा से एमएलए, एमपी या फिर ऐसी ही कोई पदवी पा चुके जिसमें पर्याप्त धन के साथ साथ सामाजिक ओहदा भी है। उनकी आने वाली संततियों को आरक्षण मिलना बंद होना चाहिए। और जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं उन्हें ही आरक्षण मिलना चाहिए। वो भी सिर्फ एक या दो पीढ़ी तक। मेरी नेताओं और लोगों से प्रार्थना है कि आरक्षण पर आपस में एक दूसरे पर तोहमत न लगाएं और प्रदेश के भईचारे को इस से अधिक और नुकसान पंहुचाने से गुरेज़ करें। न भीमराव आंबेडकर आरक्षण का लाभ मिला था, न चौधरी छोटू राम को, फिर भी उन्होंने महानता प्राप्त की अपनी कोशिश और मेहनत के बल पर।
—-ज्योत्स्ना सिंह !