ऊफ़्फ़, राष्ट्रीय राज मार्ग है, या किसी कसबे की टूटी फूटी सड़क, जिसमें गड्ढे ज़्यादा है और सड़क कम, डिवाइडरों पर कूड़े के ढेर जमा हैं, ट्रैफिक की बत्तियां काम नहीं कर रही हैं, यातायात को नियंत्रित करने वाला सिपाही भी थक कर चौराहे से दूर एक ओर बैठ गया है, हर तरफ एक कोहराम सा मचा है, हर शख्स अपनी राह टटोल कर, किसी को धकिया कर या खुद धक्के खा कर घिसट घिसट कर आगे बढ़ने की कोशिश में है। ये क्या हालत हो गयी है मेरे शहर की, मेरे देश की। हर तरफ भीड़ कहीं भी चले जाओ बस, ट्रेन, प्लेन, स्कूल, अस्पताल, बाजार, गलियां, मुह्हल्ले, मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे, बाबा के आश्रम, नीम हकीमों के द्वारे, सड़क, चौराहा, सड़क के किनारे ऊँची इमारतों के पिछवाड़े, पुल के नीचे, कहीं कोई खाली जगह दिखे वहीँ बसते हुए लोग हर हाल,बदहाल में। अमीर लोगों के पास २०-२० कमरों वाले घर हैं। कहीं २० -२० लोग एक कमरे में रह रहे हैं, गलिया बच्चों से बजबजा रही हैं, गंदगी और कीड़ों से भी। किसी चीज़ की कमी नहीं पर कोई चीज़ पूरी भी नहीं पड़ती। आखिर इतने लोग, क्या होगा इनका? ये सब झंडे उठाये क्यूँ चले आ रहे हैं, ये सब मुट्ठी उठा उठा के हवा में क्यूँ उछाल रहे हैं ? क्या चाहते हैं और किस से चाहते हैं ? क्यूँ कोई इस बारे में नहीं सोच रहा कि ,मेरा गाँव,मेरा शहर ,मेरा देश ,मेरी धरती अब इतने लोगों को पालने, परवरिश करने में असमर्थ है। कोई कुछ करता क्यूँ नहीं?????
——ज्योत्स्ना सिंह !