ज्योत्स्ना सिंह।।
इस समय पूरा भारत वर्ष बीमार है, इसका हर नागरिक किसी न किसी तरह के बुखार से जूझ रहा है। हर बुखार को आजकल वायरल का नाम दिया जा रहा है। वायरल यानि कि बुखार किसी बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ, फंगस या फिर किसी कृमि कि वजह से नहीं है अपितु एक अत्यंत सूक्षम और बहुत तेज़ी से संक्रमण करने वाले अध् जीवी (जो किसी कोशिका के बाहर निर्जीव हो) और परजीवी जोकि सिर्फ डीएनए या आरएनए के एक छोटे टुकड़े जिस पर प्रोटीन का कोट चढ़ा होता है के कारण होता है और इस पर एंटीबायोटिक्स असर नहीं करती और इन का टीका निकालना भी मुश्किल होता है।
क्योंकि ये अपना स्वरुप भी जल्दी जल्दी बदलते हैं, ज्ञात रहे कि जानलेवा एड्स और हेपाटिइस भी वायरल रोग हैं और ज़ुकाम, डेंगू, चिकेनगुनिया, स्वाइन फ्लू और अब नया ज़ीका भी वायरल रोग हैं। स्वाइन फ्लू और ज़ुकाम हवा में संक्रमण से फैलते हैं जब कि डेंगू और चिकेनगुनिया मच्छर द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे में पहुँचाया जाता है। कुछ दशक पहले तो बिचारा मच्छर सिर्फ मलेरिया फैलाने के लिए ही बदनाम था और इसको नेस्तनाबूद करने के लिए बहुत से अभियान भी चलाये गए थे जैसे कि “न मच्छर रहेगा न मलेरिया ” बहुत सारी दवाएं भी निकाली गयी थी। हर बार नयी और और घातक दवा, लेकिन मच्छर और तगड़ा हो कर हमारे सामने आकर खड़ा हो गया तो नारा बदल दिया गया ” मच्छर रहेगा मलेरिया नहीं ” और और अधिक मारक क्षमता वाली दवाएं ईजाद की गयीं लेकिन किस्सा तू डाल डाल मैं पात पात वाला मुहावरा फिट हो गया।
नारा भी बदलना पड़ गया “मच्छर रहेगा मलेरिया नहीं” लेकिन इस नारे का भी मच्छर पर कोई असर नहीं पड़ा वो और भीषण रूप लेकर सामने आगया है। अब तो कहना पड़ रहा है मच्छर रहेगा, मलेरिया के साथ साथ डेंगू, चिकनगुनिया और अन्य बीमारियां भी रहेंगी आदमी लोग बीमार होते रहेंगे और मरते रहेंगे। मच्छर के खिलाफ कितनी दवाएं, क्रीम, जेल और स्प्रे, अगरबत्तियां(कछुआ छाप) निकाले गए पर हद है सख्त जान होने की, कि कोई असर ही नहीं होता ढीठ पर, बस थोड़ी देर चक्कर खा कर बेहोश हो गया और फिर उठ खड़ा हुआ एक नयी ताकत के साथ आओ मैदान में, करलो दो दो हाथ।
अब हालात ये है कि अदना से दिखने वाले मच्छर को देखते ही इंसान की घिग्गी बंध जाती है और वो आड़ या फिर दुम दबा कर भागने का रास्ता खोजने लगता है। डॉक्टरों, अस्पतालों और पथ लैब्स की मौज आ रही है, बेचारा रोगी वो तो बीमारी से ज़्यादा उसके इलाज के लिए मिलने वाले धक्कों से परेशान है। सड़क किनारे पेड़ तले, जहाँ भी जगह मिले वहां जैसा भी डॉक्टर कम्पाउण्डर या फिर केमिस्ट ही दावा बता दे ये तो हुई मज़ाक की बात, पर यदि आजकल की बीमारियों का कारण खोजें तो मिल जाएगा-
(1) बढ़ती हुई इंसानी जनसँख्या ,जिसकी वजह से बढ़ता हुआ कूड़ा करकट और जिसकी वजह से बढ़ते हुए रोगाणु।
(2) उत्पति और क्रमिक विकास (एवोलूशन) को जाने तो छोटे जीवों में एवोलूशन तेज़ी से होता है और वो बदलती परिस्थितियों में बहुत जल्दी बदलते हैं ।
(3),जिनको आप मारना चाहते हो वो और सख्त जान बन के उभरते हैं जबकि इंसान दवाओं के अत्यधिक प्रयोग के कारण और बढ़ते प्रदूषण के कारण अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता खोता जा रहा है और नाज़ुक होता जारहा है।
(4)रोगों के जल्दी फैलने का कारण अब सैलानी प्रवृति भी है जब संक्रमित व्यक्ति एक शहर से दूसरे शहर या एक देश से दूसरे देश जाता है तो रोग नयी नयी जगहों में अपने पैर पसार लेता है ।
(5) जगह जगह इक्कठा होता पानी,और प्रदूषण कई जगह अमानवीय अवस्था में रहते, जीते हुए लोग ।
(6) रिसर्च की धीमी रफ़्तार जबकि मच्छर और वायरल में जल्दी एवोलूशन बहुत जल्दी और और दवाओं से मुकाबला जीतने वाला दमखम है ।
(7) कूलर या बरसाती या वैसे ही पानी का खड़ा रहना मच्छरों की बेतहाशा उत्पत्ति का कारण है ।
( 8) हर समय बनती इमारतें, व्यावसायिक और आवासीय परिसर भी मच्छरों के पनपने का कारण बनते हैं ।
(9) जगह जगह कूड़े का ढेर बीमारियों का कारन है । इन सब कारणों का संज्ञान लेने की आवश्यकता है वो भी तुरंत, सिर्फ कागज़ी कार्यवाई से काम चलने वाला नहीं । हम जल्दी ही भूल जाते हैं हम पे क्या गुज़री थी जब तक अगले साल इन्ही महीनो में ये बीमारियां फिर से हमें अपने चंगुल में नहीं जकड लेती। सरकार और नागरिकों दोनों को मिल कर ही इस नन्हे दानव को हराना होगा ।
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