अजय चौधरी।
देशभक्ती भी किसी पर थोपी जा सकती है। ये सिर्फ सोचने की बात नहीं रही, होने भी लगा है। आप सबको राष्टगान जरुर पसंद होगा। होना भी चाहिए हमारे देश का राष्ट्रगान जो है। मगर सुप्रीम कोर्ट का सीनेमा घरों में फिल्म के शुरु होने से पहले राष्ट्रगान बजने और उसके सम्मान में आपको खडा होने का फैसला अटपटा लग सकता है। अगर आप इस फैसले का विरोध करते हो या इस गलत ठहराने की कोशिश करते हो तो आपको पाकिस्तान जाने का आदेश भी मिल सकता है। भले ही आप कितने बडे देशभक्त क्यों न हों। भले ही आपने स्कूलों में और स्वतंत्रता दिवस पर कितनी ही शान से राष्ट्रगान गाया हो। पर अगर आपने इस फैसले का विरोध किया तो आप देशविरोधी साबित हो सकते हो। कुछ उसी तरह जैसे बैंक की लाईन में खडे हो खाली हाथ घर वापस लौटने पर अगर आप फेसबुक पर आ सरकार के नोटबंदी के फैसले का विरोध करोगे तो आप कालेधन वाले साबित कर दिए जाओगे।
तो आपको चाहते और न चाहते हुए भी फैसले को अच्छा बता उसका स्वागत कर अपनी देशभक्ती दिखानी होगी। आपसे ये कहा जा सकता है कि आप टिकट के लिए लाईन में खडे हो सकते हो तो क्या देश के लिए 2 मिनट सिनेमाघर में खडे नहीं हो सकते। लानत है तुम पर यार। आपके लिए एक फ्री सलाह है पॉपकॉन वगैराह बाद में लेना क्या पता बिखर जाएं। और हां लेट मत होना राष्ट्रगान के बीच पर एंट्री की तो बहार ही रुकना होगा। आपको स्कूल के दिन सिनेमाघर में याद न आए तो कहना। कोर्ट के अनुसार ”समय आ गया है कि जब लाग यह महसूस करें कि राष्ट्रगान संवैधानिक देशभक्ति का प्रतीक है। भाई ये समय पहले क्यों नहीं आया, अभी भाजपा के राज में क्यों आया। कोर्ट के अनुसार लोगों को यह एहसास होना चाहिए कि वे एक देश में रहते हैं, लोगों को लगना चाहिए कि यह मेरा देश है…मेरी मातृभूमि है।” तो भाई अबतक हमें ये किसी और का देश लगता था क्या?
सिनेमाघर में राष्टगान गाने का ये बयान किसी हिंदू दल, किसी गौ भक्त या आरएसएस जैसे संगठन ने नहीं दिया है। न ही सरकार या उसके किसी मंत्री की ये निजी राय है। ये तो सरासर देश की सर्वोच्च अदालत का आदेश है जो आज और अभी से ही लागू है। अगर आरएसएस जैसा संगठन कुछ ऐसा करने की राय देता तो समझा जा सकता था। मगर जजों की कमी का रोना रोने वाली देश की सर्वोच्च अदालत ने ये आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट को स्वतंत्र समझा जाता रहा है मगर उसके इस आदेश के बाद उसकी तुलना अब अगर हम सीबीआई से करें तो गलत नहीं होगी। खुद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की स्वायत्तता पर टिप्पणी करते हुए उसे “पिंजरे का तोता” करार दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट पिंजरे का तोता है या फिर कठपुतली ये तो सरकार और खुद सुप्रीम कोर्ट ही जाने।