गुजरात में एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनने जा रही है। राहुल गांधी के साथ हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकुर की तिकड़ी की अथक मेहनत के बाद भी बीजेपी राज्य में लगातार छठी बार सत्ता में आ रही है। सवाल उठता है कि22 साल की एंटी इनकम्बेंसी और जीएसटी-नोटबंदी से व्यापारियों की कथित नाराजगी के बाद भी आखिर कांग्रेस क्यों नहीं गुजरात का भरोसा जीत पाई? राज्य में क्यों उसे मिली रही हार?
बता दे की राहुल गांधी ने मेहनत तो बहुत की, लेकिन वे बाहरी होने और हिंदी भाषी होने की वजह से गुजरातियों से उस तरह से कनेक्ट नहीं हो पाए, जैसे कि पीएम मोदी। मोदी ने अपने सभी भाषण गुजराती में दिए जिससे स्वाभाविक रूप से ज्यादा से ज्यादा गुजरातियों तक वो अपनी बात पहुंचा पाए। दूसरी तरफ, राहुल गांधी हिंदी में भाषण दे रहे थे। जिसकी वजह से उनके भाषणों का मोदी के तुलना में ज्यादा असर नहीं रहा।
पीएम मोदी गुजराती अस्मिता के प्रतीक बन गए हैं और राज्य के लोग इस बात पर गर्व करते रहे हैं कि उनके बीच का एक गुजराती देश का प्रधानमंत्री है। इसलिए पीएम मोदी ने जब गुजरातियों से अपने बेटे को जिताने की भावुक अपील की, तो राज्य के लोग इससे प्रभावित होना से बच नही पाए था। चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में की गई मोदी की अपील से गुजराती अस्मिता को लेकर संवदेनशील गुजरातियों ने बीजेपी का साथ देना उचित समझा।
राज्य की जनता में बीजेपी से भले ही कुछ नाराजगी थी। लेकिन वह पीएम मोदी के मुकाबले राहुल गांधी पर भरोसा कम कर पाई। राहुल गांधी को अब तक अनिच्छुक राजनीतिज्ञ माना जाता रहा है और उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा है। इन चुनावों में राहुल ने अपनी छवि सुधारी लेकिन वो मोदी के मुकाबले ज्यादा भरोसेमंद नहीं बन पाए इसलिए लोगों ने कांग्रेस की बजाय बीजेपी को ही चुना।