प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को संकेत दिया कि आगामी बजट लोकलुभावन नहीं होगा। साथ ही कहा कि यह मुद्दा वित्त मंत्री के अधिकार क्षेत्र में आता है और वह इसमें दखल नहीं देना चाहते। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सिर्फ एक मिथक है कि आम आदमी सरकार से मुफ्त की चीजों की आस रखता है।
एक अंग्रेजी समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार सुधार के एजेंडे पर चलती रहेगी क्योंकि इसी वजह से भारत दुनिया की ‘पांच सबसे दुर्बल’ अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी से बाहर आ सका है। नोटबंदी को बहुत बड़ी सफलता बताते हुए पीएम ने कहा कि यह सिर्फ एक करेंसी नोट को दूसरे से बदलने का मामला नहीं था, बल्कि इससे दुनियाभर में भारत, उसकी सरकार और रिजर्व बैंक का सम्मान बढ़ा है।
जीएसटी पर उन्होंने कहा कि सरकार इस ‘वन नेशन वन टैक्स’ सिस्टम की खामियों को दुरुस्त करने को तैयार है। जीएसटी का विरोध करने वालों पर निशाना साधते हुए कहा कि वे लोग संसद का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि 1961 में आयकर कानून आने के बाद से उसमें कितने बदलाव करने पड़े। इसी तरह जीएसटी का अभ्यस्त होने में कुछ समय लगेगा।
माना, कृषि क्षेत्र में संकट
कृषि क्षेत्र में संकट पर प्रधानमंत्री ने कहा कि आलोचना न्यायसंगत है और सरकार इससे इन्कार नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि यह केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे किसानों की समस्याओं की पहचान कर समाधान करें।
सरकार और राजनीतिक दल न्यायपालिका संकट से दूर रहें
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार और राजनीतिक दलों को न्यायपालिका के संकट से दूर रहना चाहिए। न्यायपालिका का इतिहास शानदार रहा है और इसमें बेहद सक्षम लोग हैं। उन्हें न्याय व्यवस्था में पूरा विश्वास है और वे अवश्य ही मिल-बैठकर समस्याओं का समाधान तलाश लेंगे।