अजय चौधरी
मैं मकपा या किसी अन्य दल का समर्थक तो नहीं पर जो क्रांती लाने निकले थे, विकल्प की राजनीति करने निकले थे उन्हें मकपा से जरुर सीख लेनी चाहिए।
दरअसल ये सीख मकपा के मतभेदों से ही निकल कर सामने आई है। आपके सामने दिल्ली की आम आदमी पार्टी के भी कईं मतभेद सामने आए होंगे उन्हें याद कर लीजिए की मतभेदों और मतभेद वालों का हस्र क्या हुआ।
मकपा के महासचिव सीताराम येचूरी ने पार्टी की केंद्रीय समीति की बैठक में चुनावों में भाजपा का विरोध और कांग्रेस का समर्थन करने का प्रस्ताव रखा। जिसपर पार्टी के पूर्व महासचिव प्रकाश करात और उनके समर्थकों की राय अलग थी। उनका कहना था कि भाजपा का विरोेध करेगें लेकिन कांग्रेस का समर्थन नहीं करेंगे।
ऐसे में वोटिंग का सहारा लेना पडा। हालांकि मकपा में हमेशा आम राय बन जाती है। वोटिंग का सहारा लेने की नौबात आती नहीं लेकिन चलो इस बार आ ही गई। करात के मसविदे को 55 तो येचूरी को 31 वोट मिले। पार्टी महासचिव को केंद्रिय समिती में हार का मुंंह देखना पडा और उनका प्रस्ताव रद्द हो गया।
अब आते हैं बदलाव की राजनीति करने आने वाली आम आदमी पार्टी के ऊपर। आपने बहुत बार सुना होगा पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग हुई। मीटिंग में केजरीवाल समर्थकों ने योगेंद्र यादव को नहीं बोलने दिया। प्रशांत भूषण को नहीं बोलने दिया, कुमार विश्वास को नहीं बोलने दिया। न्योता ही नहीं भेजा। मतलब मतभेदों की पार्टी में कोई जगह नहीं। या तो जबान ही काट लो या फिर मतभेद को की पार्टी से बाहर कर दो।
आम आदमी पार्टी आज से नहीं पहले दिन से ही भटकी हुई है। उन्होंने ये समझना होगा की आपकी पार्टी लोकपाल जैसे जनआंदोलन से पैदा हुई है। जनता ने आप में विकल्प देखा था। नोटा का भी वोट आपको ही पडा था। इस बार नहीं पडेगा वैसे। आप लोकतंत्र और पारदर्शिता की राजनीति करने निकले थे। लेकिन आपकी पार्टी के भीतर की लोकतंत्र का गला घूटता आया है। जमीनी कार्यकर्ताओं की पार्टी बडे नेताओं की पार्टी बनती जा रही है।
देखिए ये बहस सिर्फ आप के लिए है। कांग्रेस और बीजेपी के लिए नहीं है। क्योंकि बदलाव लाने आप निकले थे। बीजेपी और कांग्रेस थोडा निकले थे। वो जैसे हैं लोगों को पता था। लोग ऊब चुके थे। ऐसे लोगों को रोशनी की नई किरण आपने दिखाई थी। भले ही किरण बेदी को बीजेपी पंसद आई थी पर आपके सामने टिक नहीं पाई थी। यकीन मानिए केजरीवाल अब आप शायद ही शीला दिक्षित को भी हरा पाएं। पार्टी का भविष्य अब खतरे में पड़ चुका है। दिल्ली उपचुनावों में स्थिती साफ होने में भी अब देर नहीं लगेगी। बचे रहना है तो पार्टी में लोकतंत्र जिंदा रखना होगा नहीं तो रहे सहे कार्यकर्ता भी जाते रहेंगे।