वेनेजुएला देश जो तेल भंडार वाले देशों में शामिल है, आज कल आर्थिक संकटों से जूझ रहा है। बता दें, इस देश के हालात इतने बिगड़ गए हैं कि दस लाख लोग देश छोड़कर कोलंबिया जाने को मजबूर हो गए हैं। वहीं कोलंबिया ने इस संकट से निपटने के लिए दुनिया से मानवीय आधार पर मदद मांगी है। इस आर्थिक संकट को लेकर दोनों देश एक दूसरे पर आरोप थोपते भी दिखाई दे रहे हैं। दोनों देशों हमले की भी आशंका जताई है।
इस देश के हालात इतने बिगड़ गए हैं कि लोग वेनेजुएला को छोड़कर पड़ोसी देश कोलंबिया भागने को मजबूर हैं। वेनेजुएला में आलम यह है कि यहां एक ब्रेड की कीमत हजारों रुपए हो गए हैं। एक किलो मीट के लिए 3 लाख रुपए और एक लीटर दूध के लिए 80 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ रहे हैं। यहां की सरकार ने दुनिया भर के देशों से गुहार लगाई है कि वे यहां के हालात सुधारने में उनकी मदद करें। वहीं कोलंबिया का कहना है कि चंद दिनों में वेनेजुएला के करीब 10 लाख लोग उसके यहां आकर शरण ले चुके हैं, जिसके चलते उनपर दबाव बन रहा है।
वेनेजुएला में आए इस संकट की सबसे बड़ी वजह वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट को माना जा रहा है। इसके अलावा सरकार की गलत नीतियां भी कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार हैं। सरकार की नीतियों की वजह से और वहां फैली भुखमरी के चलते हर रोज वहां की सड़कों नागरिक प्रदर्शन कर रहे हैं। आलम यह है कि वेनेजुएला के पड़ोसी देश मेक्सिको, ब्राजील, अर्जेंटीना, चिली, स्पेन समेत यूरोपीयन यूनियन भी अब उसके पूरी तरह से खिलाफ हो चुके हैं। इतना ही नहीं पेरू जैसे देश भी अब वेनेजुएला की सरकार को तानाशाह बताने से नहीं चूक रहे हैं। दरअसल पेरू की राजधानी लीमा में अप्रेल में एक सम्मेलन होने वाला है इसमें वेनेजुएला के राष्ट्रपति को न बुलाने और उनका स्वागत न करने पर कई देशों ने सहमति भी जता दी है। ऐसा तब हुआ है जब वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस माडुरो की तरफ से इस सम्मेलन में जाने पर सहमति दी गई है। लिहाजा ये कहा जा सकता है कि वेनेजुएला इस संकट के बीच अकेला खड़ा है।
बहरहाल, आपको यहां पर यह भी बता दें कि वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तेल पर टिकी हुई है। वेनेजुएला में सऊदी अरब से ज्यादा बड़ा तेल का भंडार मौजूद है। लेकिन यहां के तेल की किस्म थोड़ी अलग है जिसे भारी पेट्रोलियम कहा जाता है। भारी पेट्रोलियम को रिफाइन करना खर्चीला होता है। यही वजह है कि दूसरे देशों की तुलना में वेनेजुएला के कच्चे तेल की कीमत कम है। भारत समेत दुनिया भर की कंपनियां यहां तेल की खुदाई में शामिल हैं। लेकिन सरकार की गलत नीतियों और विदेशी कंपनियों पर कसे शिकंजे के बाद यहां से कई कंपनियों ने बाहर का रुख कर लिया है। यही वजह है कि जहां हर रोज 30 लाख बैरल तेल रोजाना निकलता था वहां अब ढाई लाख बैरल भी नहीं निकल पा रहा है। आपको बता दें कि अमेरिका के बाद केवल भारत ही है जो यहां से नगद तेल खरीदता है। जहां तक भारत की बात है तो दवा उद्योग के लिए वेनेजुएला महत्वपूर्ण बाजार है।