बहुत से लोग चाहते हैं कि वो अपनी इच्छा मुताबिक इस दुनिया से अलविदा लें लेकिन इस मामले में भारत का कानून उनका साथ नहीं देता था। लेकिन अब देश में इच्छामृत्यु को सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत दे दी है। लेकिन इज्जाजत मिलने के बाद भी इच्छामृत्यु इतनी आसान नहीं है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही कडे दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। ताकि कोई इसका गलत फायदा न उठा सके। कोर्ट ने अपने इस एतिहासिक फैसले को सुनाते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को पूरी गरीमा के साथ मौत चुनने का अधिकार है। कोर्ट के इस फैसले से अब लाइलाज लोगों या लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर जी रहे लोगों को प्राण त्यागने की इजाजत होगी।
कोर्ट ने ऐसे लोगों को लिविंग विल (इच्छामृत्यु का वसीयत) ड्राफ्ट करने की भी अनुमति दे दी है जो मेडिकल कॉमा में रहने या लाइलाज बीमारी से ग्रसित होने की वजह से मौत को गले लगाना चाहते हैं। देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है। संविधान पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस ए के सिकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण भी शामिल थे।
Supreme Court says passive #Euthanasia is permissible with guidelines. pic.twitter.com/cOcQu8VbUN
— ANI (@ANI) March 9, 2018
मामले में जजों ने चार अलग-अलग राय रखी लेकिन सभी ने एकमत होकर लिविंग विल पर सहमति जताई और कहा कि विशेष परिस्थितियों के तहत इच्छामृत्यु की मांग करने वाले लोगों को लिखित रूप में लिविंग विल देना ही होगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उस याचिका पर आया है जिसमें लाइलाज बीमारी से जूझ रहे ऐसे शख्स जिसके स्वास्थ्य में सुधार होने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई है, के लिए इच्छामृत्यु की इजाजत देने की मांग की गई थी। कोर्ट ने पिछले साल 11 अक्टूबर को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
Human beings have the right to die with dignity: Supreme Court after allowing passive #Euthanasia with guidelines.
— ANI (@ANI) March 9, 2018
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इच्छामृत्यु की मांग करने वाले शख्स के परिवार की अर्जी पर लिविंग विल को मंजूर किया जा सकता है लेकिन इसके लिए एक्सपर्ट डॉक्टर्स की टीम को भी यह लिखकर देना होगा कि बीमारी से ग्रस्त शख्स का स्वस्थ होना असंभव है। कॉमन कॉज नामक एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जैसे नागरिकों को जीने का अधिकार है, उसी तरह उन्हें मरने का भी अधिकार है। इस पर केंद्र सरकार ने इच्छामृत्यु की वसीयत (लिविंग विल) का विरोध किया था। हालांकि, मेडिकल बोर्ड के निर्देश पर लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने की हामी भरी थी।
SC said that 'living will' be permitted but with the permission from family members of the person who sought passive #Euthanasia and also a team of expert doctors who say that the person's revival is practically impossible.
— ANI (@ANI) March 9, 2018